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Can lawyers be held liable for deficiency in service under consumer protection law क्या उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत वकील सेवा में कमी के लिए उत्तरदायी माने जा सकते हैं?

Can lawyers be held liable for deficiency in service under consumer protection law

Can lawyers be held liable for deficiency in service under consumer protection law

क्या उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत वकील सेवा में कमी के लिए उत्तरदायी माने जा सकते हैं?

भारतीय न्यायिक प्रणाली में वकीलों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। वे न केवल कानून की व्याख्या करते हैं, बल्कि अपने मुवक्किलों को न्याय दिलाने में एक मुख्य कड़ी भी होते हैं। ऐसे में जब कोई पक्ष अदालत में अपना मुकदमा हार जाता है, तो अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या वकील की सेवा में कोई कमी रही है? इसी प्रश्न का उत्तर सुप्रीम कोर्ट ने नंदलाल लोहरिया बनाम जगदीश चंद पुरोहित (2021) मामले में स्पष्ट रूप से दिया है।

यह फैसला उपभोक्ता संरक्षण कानून (Consumer Protection Law) और वकीलों की पेशेवर जिम्मेदारियों (Professional Responsibilities) के आपसी संबंधों की गंभीर पड़ताल करता है। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि उपभोक्ता कानून का दायरा वकीलों की सेवा पर किस सीमा तक लागू होता है और किन परिस्थितियों में उन्हें उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

वकील की भूमिका: एजेंट और फिड्युशियरी

सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि एक वकील का संबंध अपने मुवक्किल से एक एजेंट और फिड्युशियरी (विश्वासपात्र) के रूप में होता है। वकील का कर्तव्य है कि वह उचित कानूनी सलाह दे, आवश्यक दस्तावेज तैयार करे और अदालत में प्रभावी ढंग से अपने मुवक्किल का पक्ष रखे। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हर केस में जीत की गारंटी दी जाए।

केवल मुकदमा हारने से सेवा में कमी नहीं मानी जा सकती

कोर्ट ने कहा कि किसी भी केस में हार सिर्फ इसलिए नहीं मानी जा सकती कि वकील ने अपने कर्तव्यों में चूक की है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत शिकायतकर्ता को यह साबित करना होगा कि वकील ने लापरवाही की है, गलत सलाह दी है, या उचित परिश्रम नहीं किया है। बिना ठोस साक्ष्यों के केवल हार के आधार पर सेवा में कमी का दावा नहीं किया जा सकता।

इस दृष्टिकोण से कोर्ट ने निचली उपभोक्ता अदालतों (District, State और National Consumer Forums) के निर्णयों का समर्थन किया, जिन्होंने वकीलों के खिलाफ की गई शिकायतों को खारिज कर दिया था।

पेशेवर कदाचार और सेवा में कमी: एक स्पष्ट भेद

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह महत्वपूर्ण अंतर स्पष्ट किया कि वकील द्वारा किया गया पेशेवर कदाचार (Professional Misconduct) और सेवा में कमी (Deficiency in Service) दो भिन्न विषय हैं। जहां कदाचार के मामलों को एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के तहत बार काउंसिल को सौंपा जाता है, वहीं सेवा में कमी की शिकायतें तभी स्वीकार होती हैं जब उपयुक्त साक्ष्य उपलब्ध हों। उपभोक्ता फोरम ऐसे मामलों में तभी दखल दे सकता है जब वकील की सेवा वाकई में लापरवाही या असावधानीपूर्ण हो।

उपभोक्ता कानून की सीमाएँ

कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम आमतौर पर सेवा प्रदाताओं पर लागू होता है, लेकिन वकीलों के संदर्भ में इसे प्रत्यक्ष रूप से लागू नहीं किया जा सकता। वकीलों की सेवाएं ऐसी होती हैं जिन पर कई बाहरी कारकों का प्रभाव होता है—जैसे कि न्यायिक विवेक, केस की वास्तविक ताकत, गवाहों की विश्वसनीयता और अदालत की व्याख्या। इन सभी कारकों पर वकील का कोई नियंत्रण नहीं होता, इसलिए निष्कर्ष केवल सेवा की गुणवत्ता पर आधारित नहीं हो सकता।

साक्ष्य की आवश्यकता

कोर्ट ने दोहराया कि यदि किसी वकील पर लापरवाही का आरोप लगाया जा रहा है, तो उसका समर्थन करने वाले ठोस और भरोसेमंद साक्ष्य प्रस्तुत करना अनिवार्य है। नंदलाल लोहरिया केस में भी यही देखा गया कि वकील की किसी स्पष्ट लापरवाही का कोई प्रमाण नहीं था, इसीलिए शिकायत अस्वीकार कर दी गई।

पूर्ववर्ती निर्णयों का संदर्भ

इस निर्णय को मज़बूती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व के कुछ फैसलों का हवाला दिया:

  • वी.पी. श्रीवास्तव बनाम इंडियन एयरलाइंस कॉर्पोरेशन (2009): कोर्ट ने कहा कि पेशेवरों को तभी दोषी माना जा सकता है जब लापरवाही या अक्षमता साबित हो।
  • डी.के. गांधी बनाम एम. मैथियास (2007): इसमें कोर्ट ने उपभोक्ता की जिम्मेदारी बताई कि वह सेवा में कमी के पर्याप्त प्रमाण दे।
  • सी. रंगास्वामी बनाम एडवोकेट पी. मुरुगेशन (2001): कोर्ट ने साफ किया कि वकील मुकदमे के नतीजे की गारंटी नहीं दे सकते, और केवल हार को सेवा में कमी नहीं माना जा सकता।

उपभोक्ता मंचों का दुरुपयोग: सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उपभोक्ता मंचों का दुरुपयोग कर वकीलों के खिलाफ निराधार शिकायतें दर्ज कराना न्यायिक व्यवस्था पर अतिरिक्त भार डाल सकता है और इससे वकीलों की पेशेवर स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। कोर्ट ने कहा कि हर केस में एक पक्ष हारता ही है, लेकिन हार को सेवा की कमी मानना कानून का गलत उपयोग होगा।

निष्कर्ष: संतुलन की ओर एक मजबूत कदम

नंदलाल लोहरिया बनाम जगदीश चंद पुरोहित का यह ऐतिहासिक निर्णय भारतीय न्याय प्रणाली में वकीलों की स्थिति को स्पष्ट करता है। यह फैसला उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करता है, परंतु साथ ही वकीलों को अनावश्यक कानूनी दबाव से भी बचाता है। यह न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता बनाए रखने और पेशे की गरिमा को सुरक्षित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

Earlier Judgementhttps://indiankanoon.org/doc/190258485/
Citation: Special Leave Petition (C) Diary No. 24842 Of 2021

Date: 08.11.2021

Court: Supreme Court of India

Coram: Hon’ble Mr. Justice M.R. Shah, Hon’ble Mrs. Justice B.V. Nagarathna

Judgement by Hon’ble Mr. Justice M.R. Shah

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