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Surgery Without Proper Setup is Negligence ज़रूरी ढाँचे के बिना बड़ी सर्जरी करना चिकित्सा लापरवाही: हैदराबाद जिला आयोग का निर्णय
Surgery Without Proper Setup is Negligence ज़रूरी ढाँचे के बिना बड़ी सर्जरी करना चिकित्सा लापरवाही: हैदराबाद जिला आयोग का निर्णय
हैदराबाद जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की पीठ — जिसकी अध्यक्षता बी. उमा वेंकटा सुब्बा और सदस्य सी. लक्ष्मी प्रसन्ना ने की — ने Vitality Health Services अस्पताल को चिकित्सीय लापरवाही और सेवा में कमी का दोषी पाया है, जिसके चलते वादी की पत्नी की मृत्यु हो गई। आयोग ने वादी और उनके दो बच्चों को ₹10 लाख रुपये का मुआवजा और ₹50,000 रुपये कानूनी खर्च के रूप में देने का आदेश दिया।
प्रकरण का संक्षिप्त विवरण:
वादी की पत्नी को गर्भाशय से जुड़ी एक बीमारी ‘एडेनोमायोसिस’ (Adenomyosis) का निदान हुआ था। इसके इलाज के तहत Vitality Health Services अस्पताल में उनकी हिस्टेरेक्टॉमी (गर्भाशय हटाने) और ओओफोरेक्टॉमी (अंडाशय हटाने) की सर्जरी की गई।
सर्जरी के तुरंत बाद वादी को बताया गया कि ऑपरेशन के दौरान उनकी पत्नी को स्ट्रोक आया है और स्थिति गंभीर है। इसके अलावा यह भी बताया गया कि अस्पताल में वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं है, इसलिए उनकी पत्नी को तुरंत एक सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल ले जाना पड़ेगा।
इसके बाद उन्हें Wellness Hospital नामक दूसरे अस्पताल में शिफ्ट किया गया, वह भी ‘बैन सर्किट’ (Bain’s Circuit) नामक अस्थायी वेंटिलेटर पर। इस ट्रांसफर में 30 मिनट से अधिक का समय लग गया, जिससे उनकी पत्नी को कार्डियो-पल्मोनरी जटिलताएं (Cardio-Pulmonary Complications) हो गईं और अंततः उनकी मृत्यु हो गई।
वादी ने इस घटना को लेकर रामगोपालपुरम पुलिस थाने में डॉक्टरों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि लापरवाहीपूर्वक की गई सर्जरी के कारण उनकी पत्नी की मृत्यु हुई है।
प्रशासनिक कार्यवाही:
शिकायत के आधार पर संबंधित थाने के स्टेशन हाउस ऑफिसर (SHO) ने जिला चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी, हैदराबाद को पत्र लिखकर जांच के लिए जानकारी मांगी। इसके बाद एक जांच समिति गठित की गई, जिसने 7 दिन में विस्तृत रिपोर्ट सौंपी।
वादी ने अनुरोध किया कि यह रिपोर्ट SHO को सौंपी जाए ताकि आवश्यक कार्यवाही की जा सके।
बाद में जिला चिकित्सा अधिकारी ने विशेषज्ञ राय ली, जिसमें बताया गया कि सर्जरी सामान्य रही और एनेस्थीसिया से मरीज की रिकवरी में देरी हुई। एनेस्थेसिया विभाग के प्रमुख की राय में यह भी कहा गया कि लैप्रोस्कोपिक सर्जरी अधिक समय तक चली और मरीज के मेटाबोलिक सिस्टम में गड़बड़ी थी। इस पर आगे सलाह के लिए न्यूरोलॉजी विभाग को मामला भेजा गया, और मामला एक विभाग से दूसरे विभाग में चलता रहा लेकिन कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
इस निष्क्रियता से दुखी होकर वादी ने तेलंगाना उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दाखिल की, जिस पर न्यायालय ने आदेश दिया कि मेडिकल अधिकारी जानकारी दें और SHO उचित कार्यवाही करें।
हालाँकि, हाई कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई। इसके बाद वादी ने हैदराबाद जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज की।
वादी की दलीलें:
वादी ने कहा कि अस्पताल के डॉक्टर इस प्रकार की जटिल सर्जरी के लिए उपयुक्त योग्यता और अनुभव नहीं रखते थे। साथ ही, अस्पताल में एम्बुलेंस और स्ट्रेचर जैसी बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं थीं, जिससे उनकी पत्नी को समय रहते दूसरे अस्पताल नहीं ले जाया जा सका।
यह भी आरोप लगाया गया कि जब उनकी पत्नी को मृत घोषित कर दिया गया, तब वेंटिलेटर को बंद कर दिया गया और उसे पुनर्जीवित करने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की गई।
अस्पताल का पक्ष:
Vitality Health Services ने जवाब में कहा कि वादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत “उपभोक्ता” नहीं है, इसलिए यह शिकायत स्वीकार्य नहीं है। अस्पताल ने यह भी आरोप लगाया कि वादी ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की है और उनके खिलाफ IPC की धारा 464 के तहत मामला चलाया जाना चाहिए।
आयोग के अवलोकन:
आयोग ने विशेषज्ञ रिपोर्ट और प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर पाया कि गर्भाशय हटाने जैसी जटिल सर्जरी सामान्य एनेस्थीसिया में नहीं की जानी चाहिए थी, खासकर तब जब अस्पताल में ICU और वेंटिलेटर जैसी महत्वपूर्ण सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं।
यह भी पाया गया कि अस्पताल में एम्बुलेंस की व्यवस्था नहीं थी, जिसके कारण मरीज को दूसरी जगह ले जाने में देरी हुई और नतीजन आवश्यक वेंटिलेटर सपोर्ट मिलने में 3 घंटे की देरी हुई।
आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह अस्पताल की सेवा में कमी और चिकित्सकीय लापरवाही का मामला है।
जब मरीज को Wellness Hospital पहुंचाया गया, तो उसे तुरंत वेंटिलेटर पर रखा गया और सभी जरूरी दवाइयां दी गईं, जैसे कि एट्रोपिन और एड्रेनालिन इंजेक्शन। CPR भी 30 मिनट तक दिया गया, परंतु मरीज को बचाया नहीं जा सका।
इसलिए Wellness Hospital को दोषमुक्त किया गया, क्योंकि वहाँ कोई लापरवाही नहीं पाई गई।
निर्णय और राहत:
आयोग ने वादी की शिकायत को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्नलिखित राहतें प्रदान कीं:
- Vitality Health Services अस्पताल को वादी और उनके दो बच्चों को ₹10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश।
- ₹50,000 रुपये कानूनी खर्चों के रूप में अलग से दिए जाने का आदेश।
- Wellness Hospital के खिलाफ की गई शिकायत को खारिज कर दिया गया।
निष्कर्ष:
यह मामला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि बिना आवश्यक चिकित्सा ढाँचे के गंभीर सर्जरी करना केवल लापरवाही ही नहीं, बल्कि जानलेवा भी हो सकता है। यह निर्णय उन अस्पतालों के लिए एक चेतावनी है जो आवश्यक सुविधाओं के बिना गंभीर चिकित्सा प्रक्रियाएं करते हैं। साथ ही, यह पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने का एक सकारात्मक उदाहरण भी है।
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