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Court fines britannia for contaminated biscuits: मुंबई जिला उपभोक्ता आयोग ने ब्रितानिया इंडस्ट्रीज़ और रिटेलर को दूषित बिस्किट बेचने का दोषी ठहराया

Court fines britannia for contaminated biscuits

Court fines britannia for contaminated biscuits मुंबई जिला उपभोक्ता आयोग ने ब्रितानिया इंडस्ट्रीज़ और रिटेलर को दूषित बिस्किट बेचने का दोषी ठहराया:

“Britannia and Retailer Held Liable by Mumbai Consumer Court for Selling Contaminated Biscuits with Live Worms”

मुंबई जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (साउथ मुंबई बेंच) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में ब्रितानिया इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड और उसके अधिकृत विक्रेता (रिटेलर) को दूषित बिस्किट बेचने का दोषी ठहराया है। आयोग की पीठ, जिसमें अध्यक्ष सादिकली बी. सय्यद और सदस्य जी.एम. कापसे शामिल थे, ने वादी को ₹1,50,000 मानसिक पीड़ा, उत्पीड़न और शारीरिक परेशानी के लिए मुआवजा और ₹25,000 मुकदमेबाज़ी खर्च के रूप में देने का आदेश दिया।

मामला संक्षेप में:

वादी ने ‘गुड डे’ बिस्किट का एक पैकेट एक मेडिकल स्टोर – अशोक एम. शाह नामक दुकान से खरीदा था, जो ब्रितानिया इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड का अधिकृत विक्रेता है। इस बिस्किट का निर्माण ब्रितानिया द्वारा किया गया था। जब वादी ने बिस्किट का सेवन किया, तो उसे उसमें एक जीवित कीड़ा मिला, जिससे उसे उल्टी, घबराहट और मानसिक आघात का अनुभव हुआ।

इसके पश्चात वादी ने इस मुद्दे को लेकर बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) के फूड टेस्टिंग लैब से संपर्क किया, जहाँ परीक्षण के बाद यह पुष्टि हुई कि बिस्किट में बाहरी और अस्वच्छ पदार्थ उपस्थित था। फूड एनालिस्ट रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि यह उत्पाद मानवीय उपभोग के योग्य नहीं है।

वादी ने दिनांक 04.02.2019 को ब्रितानिया को एक कानूनी नोटिस भेजा। संतोषजनक उत्तर नहीं मिलने पर, वादी ने मुंबई जिला उपभोक्ता आयोग में क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए शिकायत दर्ज करवाई।

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ब्रितानिया का पक्ष:

ब्रितानिया ने अपनी सफाई में यह कहा कि वादी यह साबित नहीं कर सका कि जिस बिस्किट से उसे समस्या हुई वह वास्तव में ब्रितानिया द्वारा निर्मित था, क्योंकि वादी ने न तो उस पैकेट का रैपर प्रस्तुत किया और न ही कोई ऐसा साक्ष्य जिससे निर्माण इकाई का पता चलता।

ब्रितानिया ने यह भी दावा किया कि उनके निर्माण प्रक्रियाएं ISO (International Standard for Organization) और HACCP (Hazard Analysis Critical Control Point) से प्रमाणित हैं, और वे अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों का पालन करते हैं। अतः ऐसी चूक की संभावना नहीं है।

रिटेलर (दुकान) का पक्ष:

दुकान की ओर से यह कहा गया कि वादी ने उनसे कोई बिस्किट खरीदा ही नहीं, क्योंकि वह कोई पक्की रसीद या पैकेट का प्रमाण नहीं दे पाया। दुकान ने दावा किया कि वह केवल सीलबंद उत्पादों की बिक्री करता है और उत्पाद की गुणवत्ता के लिए निर्माता ही जिम्मेदार है।

साथ ही, दुकान ने यह भी कहा कि वादी द्वारा प्रस्तुत फूड एनालिस्ट रिपोर्ट खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 46 से 49 के अंतर्गत नियमों का पालन नहीं करती, अतः उस पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।

आयोग के अवलोकन:

आयोग ने फूड एनालिस्ट रिपोर्ट को प्रमाणिक मानते हुए कहा कि यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि बिस्किट मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त और दूषित था। रिपोर्ट में किसी प्रकार की विशेषज्ञ आपत्ति या खंडन न ब्रितानिया की ओर से आया और न ही दुकान की ओर से, जिससे यह माना गया कि रिपोर्ट निर्विवाद रूप से सत्य है।

आयोग ने कहा कि ब्रितानिया अपने उपभोक्ताओं को सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता वाला खाद्य उत्पाद उपलब्ध कराने में असफल रहा है, जो कि खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के अंतर्गत उसका कर्तव्य था। इसके अतिरिक्त, दुकान संचालक ने भी उचित सतर्कता नहीं बरती और एक दूषित उत्पाद उपभोक्ता को बेच दिया।

इस प्रकार आयोग ने पाया कि दोनों – ब्रितानिया और उसका अधिकृत विक्रेता – उपभोक्ता सेवा में कमी और अनुचित व्यापारिक आचरण के दोषी हैं।

निर्णय और राहत:

आयोग ने शिकायत स्वीकार करते हुए निम्नलिखित राहतें प्रदान कीं:

  1. मानसिक उत्पीड़न, असुविधा और शारीरिक परेशानी के लिए ₹1,50,000 का मुआवजा।
  2. मुकदमे से संबंधित खर्च के रूप में ₹25,000 अतिरिक्त।

यह समस्त राशि ब्रितानिया और रिटेलर को संयुक्त रूप से भुगतान करने का आदेश दिया गया।

निष्कर्ष:

यह निर्णय उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह मामला न केवल बड़े ब्रांडों की जवाबदेही सुनिश्चित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि यदि कोई उपभोक्ता न्याय के लिए उचित कानूनी मार्ग अपनाता है, तो उसे राहत अवश्य मिल सकती है। आयोग का यह निर्णय भविष्य में सभी उपभोक्ता उत्पाद निर्माताओं और विक्रेताओं के लिए एक चेतावनी स्वरूप भी देखा जा रहा है कि गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

इस प्रकार यह मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन और उपभोक्ता अधिकारों की पुनः पुष्टि करता है।

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ब्रितानिया दूषित बिस्किट मामला FAQs

प्रश्न: यह मामला किस आयोग में दायर किया गया था?
उत्तर: यह मामला मुंबई जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (साउथ मुंबई बेंच) में दायर किया गया था।

  1. प्रश्न: शिकायतकर्ता ने कौन सा बिस्किट खरीदा था?
    उत्तर: शिकायतकर्ता ने ब्रितानिया का ‘गुड डे’ बिस्किट खरीदा था।
  2. प्रश्न: बिस्किट में क्या गड़बड़ी पाई गई?
    उत्तर: बिस्किट में एक जीवित कीड़ा पाया गया, जो कि उपभोग के लिए असुरक्षित था।
  3. प्रश्न: यह बिस्किट किस दुकान से खरीदा गया था?
    उत्तर: यह बिस्किट ‘अशोक एम. शाह’ नामक एक अधिकृत रिटेलर की दुकान से खरीदा गया था।
  4. प्रश्न: शिकायतकर्ता ने रिपोर्ट कहां से करवाई?
    उत्तर: शिकायतकर्ता ने BMC के खाद्य प्रयोगशाला से जांच करवाई थी।
  5. प्रश्न: फूड एनालिस्ट रिपोर्ट में क्या निष्कर्ष निकाला गया?
    उत्तर: रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकला कि बिस्किट दूषित था और मानवीय उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं था।
  6. प्रश्न: आयोग ने शिकायतकर्ता को कितना मुआवजा दिया?
    उत्तर: आयोग ने ₹1,50,000 मुआवजा और ₹25,000 मुकदमेबाज़ी खर्च के रूप में प्रदान किया।
  7. प्रश्न: ब्रितानिया का क्या बचाव था?
    उत्तर: ब्रितानिया ने कहा कि वादी रैपर या प्रमाण नहीं दिखा सका और उनकी निर्माण प्रक्रिया ISO व HACCP प्रमाणित है।
  8. प्रश्न: दुकान संचालक ने क्या सफाई दी?
    उत्तर: दुकान ने दावा किया कि वह केवल सीलबंद उत्पाद बेचता है और शिकायतकर्ता ने खरीद का कोई प्रमाण नहीं दिया।
  9. प्रश्न: आयोग ने किस आधार पर दोष तय किया?
    उत्तर: आयोग ने फूड एनालिस्ट रिपोर्ट को मानते हुए माना कि उत्पाद दूषित था और दोनों पक्ष सुरक्षा में विफल रहे।
  10. प्रश्न: क्या ब्रितानिया और दुकान दोनों जिम्मेदार ठहराए गए?
    उत्तर: हाँ, आयोग ने दोनों को संयुक्त रूप से उत्तरदायी माना।
  11. प्रश्न: क्या यह मामला उपभोक्ता अधिकारों से जुड़ा है?
    उत्तर: हाँ, यह मामला उपभोक्ता सुरक्षा और गुणवत्ता से जुड़ा हुआ है।
  12. प्रश्न: क्या फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट, 2006 का उल्लंघन हुआ?
    उत्तर: हाँ, आयोग ने पाया कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम का उल्लंघन हुआ है।
  13. प्रश्न: इस निर्णय का क्या महत्व है?
    उत्तर: यह उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति सजग करता है और कंपनियों को जवाबदेह बनाता है।
  14. प्रश्न: क्या इस तरह के मामलों में उपभोक्ता को न्याय मिल सकता है?
    उत्तर: बिल्कुल, यदि उपभोक्ता उचित प्रक्रिया अपनाते हैं तो उन्हें न्याय अवश्य मिलता है।

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