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Supreme Court – Borrowers of for-profit loans are not consumers

Borrowers of for-profit loans are not consumers

Borrowers of for-profit loans are not consumers सुप्रीम कोर्ट: मुनाफे हेतु लिए गए परियोजना/व्यावसायिक ऋण के उधारकर्ता ‘उपभोक्ता’ नहीं; NCDRC आदेश निरस्त और CIBIL रिपोर्टिंग विवाद पर स्पष्ट मार्गदर्शन

पृष्ठभूमि

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि यदि किसी उधारकर्ता ने लाभ कमाने के उद्देश्य से ऋण लिया है, तो उसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत “उपभोक्ता” नहीं माना जाएगा। यह निर्णय उस आदेश को निरस्त करते हुए आया जिसमें राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया को एक कंपनी—एड ब्यूरो एडवरटाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड—को मुआवजा देने और उसके ऋण खाते को निपटानित बताने वाला प्रमाण-पत्र जारी करने का निर्देश दिया था। मामला मूलतः एक फिल्म परियोजना के पोस्ट-प्रोडक्शन वित्तपोषण से जुड़े ऋण पर उत्पन्न हुए विवाद और बाद में क्रेडिट सूचना ब्यूरो (CIBIL) में कथित गलत रिपोर्टिंग के कारण हुए नुकसान के दावे से संबंधित था।

मामले के तथ्य

रिकॉर्ड के अनुसार, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने एड ब्यूरो एडवरटाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड को लगभग 10 करोड़ रुपये का ऋण स्वीकृत किया था। यह ऋण रजनीकांत अभिनीत फिल्म “कोचादैयान” के पोस्ट-प्रोडक्शन कार्यों के लिए परियोजना वित्तपोषण के रूप में लिया गया बताया गया। बाद में भुगतान में चूक होने पर विवाद ऋण वसूली अधिकरण (DRT) तक पहुंचा और अंततः एकमुश्त निपटान (वन-टाइम सेटलमेंट) के जरिए लगभग 3.56 करोड़ रुपये में मामला सुलझा। कंपनी का आरोप था कि निपटान के बाद भी बैंक ने उसे CIBIL में ‘डिफॉल्टर’ के रूप में रिपोर्ट कर दिया, जिससे उसकी साख और कारोबारी संबंधों को नुकसान पहुंचा और व्यावसायिक अवसर छिन गए। इसी पृष्ठभूमि में कंपनी ने उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया।

NCDRC का आदेश और बैंक की अपील

NCDRC ने कंपनी के पक्ष में निर्णय देते हुए बैंक को 75 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया और साथ ही यह भी कहा कि बैंक एक प्रमाण-पत्र जारी करे कि ऋण खाता निपटानित है और कोई बकाया शेष नहीं है। इस आदेश को चुनौती देते हुए सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा। अपील पर सुनवाई जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने की। बैंक की दलील थी कि कंपनी द्वारा लिया गया ऋण स्पष्ट रूप से एक लाभ-उन्मुख व्यावसायिक उद्देश्य के लिए था, इसलिए उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत विवाद सुनवाई योग्य नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की निर्णायक टिप्पणी

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह महत्वपूर्ण सिद्धांत दोहराया कि किसी इकाई—चाहे वह कंपनी हो या व्यक्ति—को उपभोक्ता मानने का प्रश्न उसके दर्जे पर नहीं, बल्कि सेवा या वस्तु के उपभोग के मकसद पर निर्भर करता है। अदालत ने कहा कि केवल इस वजह से कि पक्षकार एक व्यावसायिक संस्था है, उसे स्वतः उपभोक्ता की परिभाषा से बाहर नहीं माना जाएगा; लेकिन जहां सेवा (यहां बैंकिंग/वित्तीय सेवा) सीधे-सीधे लाभ अर्जन से जुड़ी परियोजना के वित्तपोषण के लिए ली गई हो, वहां उपभोक्ता संरक्षण कानून का सहारा उपलब्ध नहीं होगा। अदालत ने पाया कि संबंधित ऋण एक परियोजना ऋण था, जिसका उद्देश्य व्यावसायिक गतिविधि से लाभ कमाना था। ऐसे में कंपनी का दावा उपभोक्ता विवाद के दायरे में नहीं आता और NCDRC द्वारा दिए गए राहत आदेश को टिकाए रखना विधिसम्मत नहीं है।

कानूनी सिद्धांत की स्पष्टता

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में उपभोक्ता की परिभाषा के तहत वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए लिए गए वस्तु या सेवा को सामान्यतः बाहर रखा गया है। अपवाद के तौर पर, यदि कोई व्यक्ति स्वयंरोज़गार के माध्यम से जीविकोपार्जन करने के लिए सीमित पैमाने पर सेवा लेता है, तो उसे सुरक्षा मिल सकती है। लेकिन यहां मामला एक कॉर्पोरेट इकाई द्वारा बड़े पैमाने पर फिल्म परियोजना का वित्तपोषण कर व्यवसायिक लाभ कमाने का था, जो कि वाणिज्यिक प्रयोजन के दायरे में आता है। इसलिए कथित “सेवा में कमी” या “अनुचित व्यापार व्यवहार” का आकलन उपभोक्ता मंचों के बजाय अन्य उपयुक्त वैधानिक उपायों जैसे DRT, सिविल न्यायालयों या बैंकिंग विनियामक तंत्र के माध्यम से किया जाना चाहिए।

CIBIL रिपोर्टिंग का संदर्भ

कंपनी का मुख्य grievance यह था कि निपटान के बावजूद बैंक ने CIBIL को उसे चूककर्ता के रूप में रिपोर्ट किया, जिससे उसे प्रतिष्ठात्मक और व्यावसायिक नुकसान हुआ। न्यायालय ने इस पहलू पर यह संकेत दिया कि क्रेडिट रिपोर्टिंग की शुचिता और सटीकता महत्त्वपूर्ण है, परंतु यदि मूल सेवा का उपयोग ही लाभ कमाने वाली वाणिज्यिक गतिविधि को आगे बढ़ाने के लिए किया गया हो, तो उपभोक्ता मंच इस तरह के विवादों का स्वाभाविक मंच नहीं है। दूसरे शब्दों में, गलत रिपोर्टिंग जैसे आरोपों का उपचार भी उस विधिक ढांचे में तलाशा जाना चाहिए जो वाणिज्यिक लेनदेन और बैंकिंग विवादों के लिए नियत किया गया है, न कि उपभोक्ता संरक्षण तंत्र में।

बेंच की दृष्टि और तर्क

पीठ ने यह भी रेखांकित किया कि व्यावसायिक इकाइयों को हर परिस्थिति में उपभोक्ता संरक्षण से बाहर नहीं किया गया है। कई स्थितियों में कंपनियां भी उपभोक्ता हो सकती हैं, जैसे जब वे गैर-वाणिज्यिक, स्वयं-उपभोग या संचालनात्मक सुविधा के लिए सीमित सेवा लेती हों जो प्रत्यक्ष मुनाफाखोरी से न जुड़ी हो। परंतु जब लेन-देन का मूल और प्रत्यक्ष उद्देश्य लाभ सृजन हो—जैसे परियोजना वित्तपोषण—तो उपभोक्ता फोरम में राहत मांगना विधि की दृष्टि से उचित नहीं। इस प्रकार, अदालत का जोर “उद्देश्य परीक्षण” पर रहा—सेवा का प्रयोजन क्या था, और क्या उसका सीधा संबंध मुनाफा कमाने से था।

संभावित प्रभाव और निहितार्थ

  • व्यवसायिक ऋणों के विवाद, विशेषकर परियोजना वित्तपोषण, कार्यशील पूंजी या बड़े व्यावसायिक उपक्रमों से जुड़े ऋण, आमतौर पर उपभोक्ता संरक्षण कानून की परिधि में नहीं आएंगे। ऐसे विवादों के निवारण के लिए DRT, SARFAESI, सिविल कोर्ट या मध्यस्थता/पंचाट जैसी वैकल्पिक व्यवस्थाएं उपयुक्त मंच हैं।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के लिए यह संदेश महत्त्वपूर्ण है कि यदि सेवा का उपयोग सीधे व्यावसायिक लाभ हेतु किया गया है, तो उपभोक्ता मंचों पर जाने से पहले क्षेत्राधिकार और स्वीकार्यता पर सावधानी से विचार किया जाए।
  • व्यक्तिगत उपभोक्ताओं के लिए, जो व्यक्तिगत जरूरतों के लिए ऋण/सेवा लेते हैं—जैसे शिक्षा ऋण, गृह ऋण (स्व-आवास), या उपभोग के लिए बैंकिंग सेवाएं—उपभोक्ता संरक्षण का दायरा बना रहता है, बशर्ते उद्देश्य वाणिज्यिक न हो।
  • बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए यह निर्णय आशय में स्पष्टता लाता है। जबकि क्रेडिट रिपोर्टिंग में शुद्धता का दायित्व बना रहता है, उपभोक्ता मंचों में वाणिज्यिक ऋण-सम्बंधी विवादों पर उत्तरदायित्व तय करने का अधिकार सीमित है।
  • कानूनी रणनीति के स्तर पर, पक्षकारों को पहले यह परखना होगा कि विवाद “सेवा में कमी” का उपभोक्तात्मक विवाद है या “वाणिज्यिक लेन-देन” का। इस वर्गीकरण से उचित मंच, प्रक्रियात्मक रणनीति और राहत का स्वरूप तय होगा।

निर्णय का सार

सुप्रीम कोर्ट ने NCDRC के आदेश को निरस्त करते हुए स्पष्ट कर दिया कि एड ब्यूरो एडवरटाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड द्वारा लिया गया ऋण एक लाभ-उन्मुख परियोजना से जुड़ा था, इसलिए कंपनी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत “उपभोक्ता” नहीं माना जा सकता। फलस्वरूप, NCDRC द्वारा दिए गए 75 लाख रुपये के मुआवजे और “नो ड्यूज़/सेटलमेंट” प्रमाण-पत्र जारी करने के निर्देश को टिकाए रखने का कोई आधार नहीं था। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि वाणिज्यिक प्रयोजन वाले ऋणों में विवाद होने पर पक्षकारों को उपयुक्त वैधानिक उपायों—जैसे DRT की कार्यवाही, सिविल वाद, या नियामकीय उपचार—का सहारा लेना चाहिए।

व्यावहारिक मार्गदर्शन

  • यदि आप या आपकी संस्था ने शुद्ध व्यावसायिक लाभ के लिए वित्तीय सेवा ली है, तो उपभोक्ता फोरम में शिकायत कायम रहने की संभावना कम है।
  • क्रेडिट रिपोर्टिंग में गलती का संदेह हो तो बैंक के आंतरिक grievance तंत्र, बैंकिंग लोकपाल/रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों, DRT या अन्य उपयुक्त विधिक मंचों की ओर रुख करें।
  • अनुबंधों में रिपोर्टिंग, डिफॉल्ट की परिभाषा, और निपटान के बाद डेटा-अपडेट की शर्तों को स्पष्ट रूप से दर्ज कराएं ताकि भविष्य के विवादों का जोखिम घटे।

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प्रश्नोत्तर (FAQ)

  • प्रश्न: क्या लाभ कमाने के उद्देश्य से लिया गया ऋण लेने वाला उधारकर्ता उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत “उपभोक्ता” माना जाएगा?
    उत्तर: नहीं, यदि ऋण सीधे-सीधे मुनाफा कमाने वाली वाणिज्यिक गतिविधि से जुड़ा है, तो उधारकर्ता “उपभोक्ता” नहीं माना जाएगा।
  • प्रश्न: क्या सिर्फ कंपनी होने के कारण कोई इकाई उपभोक्ता की परिभाषा से बाहर हो जाती है?
    उत्तर: नहीं, केवल कंपनी होने से बाहर नहीं होती; निर्णायक कसौटी यह है कि सेवा/ऋण का उद्देश्य वाणिज्यिक लाभ है या व्यक्तिगत/गैर-व्यावसायिक।
  • प्रश्न: परियोजना वित्तपोषण (प्रोजेक्ट लोन) से जुड़ा विवाद उपभोक्ता फोरम में चल सकता है?
    उत्तर: सामान्यतः नहीं, क्योंकि परियोजना वित्तपोषण लाभ-उन्मुख वाणिज्यिक प्रयोजन होता है।
  • प्रश्न: यदि बैंक ने CIBIL को गलत रिपोर्टिंग की हो, तो क्या उपभोक्ता मंच में शिकायत की जा सकती है?
    उत्तर: यदि मूल ऋण वाणिज्यिक लाभ हेतु था, तो उपभोक्ता मंच उपयुक्त नहीं होगा; अन्य वैधानिक मंचों का सहारा लेना चाहिए।
  • प्रश्न: ऐसे मामलों में उपयुक्त वैकल्पिक कानूनी उपाय क्या हैं?
    उत्तर: ऋण वसूली अधिकरण (DRT), SARFAESI के तहत उपाय, सिविल अदालत में क्षतिपूर्ति/अनुबंध उल्लंघन का दावा, बैंक का आंतरिक शिकायत निवारण तंत्र, RBI के एकीकृत लोकपाल योजना, और क्रेडिट सूचना कंपनियों के साथ विवाद निवारण तंत्र।
  • प्रश्न: यदि एकमुश्त निपटान (OTS) के बाद भी बैंक ने डिफॉल्टर के रूप में रिपोर्ट किया, तो क्या करें?
    उत्तर: बैंक से लिखित में सुधार और खाता अपडेट का अनुरोध करें, एस्केलेशन मैट्रिक्स अनुसार उच्च स्तर पर शिकायत करें, RBI लोकपाल में जाएँ, और आवश्यक हो तो सिविल दावे/DRT में उपयुक्त राहत माँगें।
  • प्रश्न: क्या MSME इकाइयों को इस निर्णय से कोई अलग लाभ या हानि है?
    उत्तर: उद्देश्य यदि लाभ कमाना ही है, तो MSME भी उपभोक्ता की परिधि से बाहर रहेंगे; अपवाद केवल वहाँ संभव है जहाँ सेवा/वस्तु का उपयोग प्रत्यक्ष व सीमित स्तर पर आजीविका हेतु गैर-वाणिज्यिक रूप में हो।
  • प्रश्न: स्वयंरोज़गार के अपवाद का क्या अर्थ है?
    उत्तर: जहाँ कोई व्यक्ति सीमित स्तर पर अपनी आजीविका चलाने के लिए वस्तु/सेवा का उपयोग करता है, वहाँ उपभोक्ता संरक्षण उपलब्ध हो सकता है; पर बड़े पैमाने के वाणिज्यिक ऋण सामान्यतः इस अपवाद में नहीं आते।
  • प्रश्न: क्या गृह ऋण उपभोक्ता विवाद माना जा सकता है?
    उत्तर: यदि गृह ऋण स्व-आवास हेतु है और वाणिज्यिक लाभ से सीधा संबंध नहीं है, तो वह उपभोक्ता विवाद हो सकता है; निवेश/व्यावसायिक मकसद (जैसे बार-बार पुनर्विक्रय/व्यापार) होने पर स्थिति भिन्न हो सकती है।
  • प्रश्न: बैंकिंग सेवाओं में कमी के कौन से उदाहरण उपभोक्ता मंच में सुनवाई योग्य हो सकते हैं?
    उत्तर: गैर-वाणिज्यिक संदर्भों में जैसे बचत/चालू खाते, क्रेडिट कार्ड शुल्क, व्यक्तिगत उपभोक्ता सेवाओं में अनुचित शुल्क या स्पष्ट सेवा कमी के मामले, बशर्ते उद्देश्य वाणिज्यिक लाभ न हो।
  • प्रश्न: NCDRC के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रद्द किया?
    उत्तर: क्योंकि संबंधित ऋण लाभ-उन्मुख परियोजना से जुड़ा था, जिससे उधारकर्ता उपभोक्ता की परिभाषा में नहीं आता था और उपभोक्ता मंच को राहत देने का अधिकार नहीं था।
  • प्रश्न: क्या कंपनी बैंक से “नो ड्यूज” या समापन प्रमाण-पत्र मांग सकती है?
    उत्तर: हाँ, अनुबंध और बैंकिंग नियमों के तहत समापन/निपटान के बाद अद्यतन प्रमाण-पत्र माँगा जा सकता है; विवाद होने पर उपयुक्त गैर-उपभोक्ता मंच का रुख करना चाहिए।
  • प्रश्न: गलत CIBIL रिपोर्टिंग से हुई प्रतिष्ठा और व्यवसायिक हानि के लिए क्षतिपूर्ति कैसे माँगी जाए?
    उत्तर: सिविल अदालत में हर्जाने का दावा, अनुबंध उल्लंघन/लापरवाही आधारित दावे, और क्रेडिट सूचना कंपनियों व बैंक के साथ सुधार/विवाद समाधान प्रक्रिया से राहत माँगी जा सकती है।
  • प्रश्न: अधिकार-क्षेत्र (जुरिस्डिक्शन) तय करने की कसौटी क्या है?
    उत्तर: “उद्देश्य परीक्षण”—सेवा/ऋण का प्रत्यक्ष उद्देश्य क्या है; यदि वह मुनाफाखोरी से जुड़ा है, तो उपभोक्ता अधिकार-क्षेत्र सामान्यतः लागू नहीं होता।
  • प्रश्न: यदि ऋण अनुबंध में मध्यस्थता (अरबिट्रेशन) का प्रावधान हो तो क्या होगा?
    उत्तर: उपभोक्ता विवादों में प्रायः मंच मध्यस्थता पर वरीय होता है, पर जहाँ लेन-देन उपभोक्ता नहीं बल्कि वाणिज्यिक है, वहाँ मध्यस्थता धारा प्रभावी रह सकती है और पार्टियों को पंचाट का रुख करना होगा।
  • प्रश्न: ऐसे विवादों में सीमितकाल (लिमिटेशन) कैसे लागू होगा?
    उत्तर: मंच-विशेष पर निर्भर करता है—सिविल दावों में सामान्यतः तीन वर्ष, RBI लोकपाल में निर्धारित समयसीमा, DRT/SARFAESI में वैधानिक समय-सीमाएँ लागू होंगी; विलंब से पहले समय-सीमा जाँचें।
  • प्रश्न: कौन-से दस्तावेज़ सहेजना आवश्यक हैं?
    उत्तर: स्वीकृति पत्र (सैंक्शन लेटर), ऋण अनुबंध, OTS/निपटान शर्तें, भुगतान प्रमाण, समापन पत्र, बैंक पत्राचार, CIBIL/क्रेडिट रिपोर्ट स्नैपशॉट और शिकायत/एस्केलेशन रिकॉर्ड।
  • प्रश्न: बैंक की CIBIL रिपोर्टिंग संबंधी जिम्मेदारियाँ क्या हैं?
    उत्तर: सटीक, समयबद्ध और अद्यतन डेटा की सूचना देना, निपटान/समापन के बाद त्वरित अपडेट करना, और त्रुटि सूचित होने पर उचित समय में सुधार करना।
  • प्रश्न: क्या सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय व्यापक रूप से बाध्यकारी है?
    उत्तर: हाँ, यह सिद्धांत उच्चतम न्यायालय की मिसाल के रूप में निम्न मंचों पर मार्गदर्शक व बाध्यकारी प्रभाव रखता है, जब तक कि तथ्य भिन्न न हों या कोई भिन्न विधिक व्यवस्था लागू न हो।
  • प्रश्न: व्यवसायिक इकाइयों को भविष्य में विवाद से बचने के लिए क्या व्यावहारिक कदम उठाने चाहिए?
    उत्तर: अनुबंध में रिपोर्टिंग/डेटा-अपडेट की स्पष्ट शर्तें शामिल करें, निपटान के बाद लिखित समापन/नो-ड्यूज शीघ्र लें, समय-समय पर क्रेडिट रिपोर्ट जाँचें, आंतरिक शिकायत तंत्र का उपयोग करें, और मंच-चयन (DRT/पंचाट/सिविल) की रणनीति पहले से तय रखें।
  • प्रश्न: क्या कभी कंपनी भी उपभोक्ता मानी जा सकती है?
    उत्तर: हाँ, यदि कंपनी किसी सेवा/वस्तु का उपयोग गैर-वाणिज्यिक या संचालन-सुविधा हेतु करती है जिसका प्रत्यक्ष संबन्ध लाभ कमाने से नहीं है, तो वह विशिष्ट परिस्थितियों में उपभोक्ता मानी जा सकती है।
  • प्रश्न: फिल्म/मीडिया परियोजनाओं जैसे मामलों में यह सिद्धांत कैसे लागू होगा?
    उत्तर: जहाँ वित्तपोषण सीधे परियोजना से आय अर्जन हेतु है, वहाँ उपभोक्ता संरक्षण लागू नहीं होगा; विवाद समाधान के लिए बैंकिंग/वाणिज्यिक मंचों का चयन करना चाहिए।
  • प्रश्न: क्या उपभोक्ता फोरम में समानांतर रूप से सिविल सूट दायर किया जा सकता है?
    उत्तर: सामान्यतः एक ही विवाद के लिए समानांतर कार्यवाहियों से बचना चाहिए; पहले सही मंच चुनें, अन्यथा अधिकार-क्षेत्र आपत्ति और प्रक्रियात्मक जटिलताएँ उत्पन्न होंगी।
  • प्रश्न: क्या निपटान के बाद भी “सेटल्ड” बनाम “क्लोज़्ड” स्टेटस का अंतर मायने रखता है?
    उत्तर: हाँ, क्रेडिट रिपोर्ट में “सेटल्ड” का अर्थ पूर्ण भुगतान नहीं होता और यह साख पर प्रभाव डाल सकता है; संभव हो तो “क्लोज़्ड/नो ड्यूज” स्थिति प्राप्त कर दस्तावेज़ कराएँ।
  • प्रश्न: अगर बैंक प्रमाण-पत्र देने में टालमटोल करे तो तत्काल कदम क्या हों?
    उत्तर: शाखा प्रबंधक और नोडल अधिकारी को लिखित अनुस्मारक भेजें, समयसीमा निर्धारित करें, एस्केलेट करें, और आवश्यक हो तो RBI लोकपाल/उचित न्यायिक मंच में याचना दायर करें।

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