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Consumer Court on negligence in hair transplant: बिना लाइसेंस बाल प्रत्यारोपण पर उपभोक्ता आयोग का सख्त फैसला

Consumer Court on negligence in hair transplant

Consumer Court on negligence in hair transplant: बिना लाइसेंस बाल प्रत्यारोपण पर उपभोक्ता आयोग का सख्त फैसला

मामला: विवेक कुमार बनाम डीएचआई एशियन रूट्स
मामला संख्या: सीसी 1090/2013 (नई दिल्ली)

भूमिका:

नई दिल्ली जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की एक पीठ, जिसमें अध्यक्ष श्रीमती पूनम चौधरी, सदस्य श्री बरीक अहमद और सदस्य श्री शेखर चंद्र सम्मिलित थे, ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए डीएचआई एशियन रूट्स नामक क्लिनिक को दोषी ठहराया। क्लिनिक पर यह आरोप सिद्ध हुआ कि उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से बाल प्रत्यारोपण (हेयर ट्रांसप्लांट) की प्रक्रिया बिना किसी वैध लाइसेंस और सरकारी अनुमति के संचालित की। साथ ही, आयोग ने यह भी कहा कि मरीज को संतोषजनक परिणाम न मिलने पर भी शुल्क वसूलना सेवा में कमी और लापरवाही के अंतर्गत आता है।

प्रारंभिक तथ्यों का संक्षेप:

शिकायतकर्ता विवेक कुमार ने सितंबर 2012 में डीएचआई एशियन रूट्स, जो कि एसपीए योगा प्राइवेट लिमिटेड की एक इकाई है, से संपर्क किया। उनका उद्देश्य था बाल झड़ने की समस्या का स्थायी समाधान पाना। क्लिनिक के डॉक्टरों ने यह आश्वासन दिया कि बाल प्रत्यारोपण प्रक्रिया के बाद उन्हें स्वाभाविक लुक मिलेगा और यह प्रक्रिया सुरक्षित और प्रभावी होगी। इसके लिए ₹2,25,000 की राशि बताई गई।

इस भरोसे के आधार पर शिकायतकर्ता ने 26 सितंबर 2011 को ₹1,00,000 अग्रिम राशि जमा करके उपचार आरंभ करवाया। क्लिनिक की नीति के अनुसार संपूर्ण राशि पहले ही जमा करनी होती है, परंतु डॉक्टरों ने शिकायतकर्ता के आश्वासन पर कि वह बाकी राशि जल्द ही जमा कर देगा, प्रक्रिया शुरू कर दी।

उपचार की प्रक्रिया:

प्रारंभ में स्कैल्प का विश्लेषण किया गया और बालों की प्राकृतिक रेखा (हेयरलाइन) को डिज़ाइन किया गया। पहले सत्र में कुल 1621 बालों का प्रत्यारोपण किया गया, जिसे शिकायतकर्ता ने स्वीकृत किया। संतुष्ट होकर शिकायतकर्ता 3 दिसंबर 2012 को दूसरे सत्र के लिए पुनः क्लिनिक गया। इस बार 2,022 बालों का प्रत्यारोपण किया गया, और ₹2,76,000 की राशि का भुगतान भी किया गया।

हालांकि इन दोनों सत्रों के बाद भी अपेक्षित परिणाम न आने पर क्लिनिक ने एक “सुधारात्मक सत्र” (कॉरेक्टिव सेशन) निशुल्क देने की पेशकश की। सर्जरी के बाद फीडबैक और गारंटी संबंधी फॉर्म शिकायतकर्ता से भरवाए गए। क्लिनिक ने यह भी बताया कि परिणाम आने में 18 महीने तक का समय लग सकता है।

परंतु जब शिकायतकर्ता को संतोषजनक परिणाम नहीं मिला, तब उसने दिल्ली जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज की और मुआवजे की मांग की।

शिकायतकर्ता की दलीलें:

शिकायतकर्ता का कहना था कि क्लिनिक उपभोक्ताओं के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करने में असफल रहा और यह सेवा में भारी कमी तथा अनुचित व्यापारिक आचरण का मामला है। क्लिनिक द्वारा जारी की गई प्रचार सामग्री में वादा किया गया था कि विशेषज्ञ डॉक्टरों की सलाह से पूर्ण बाल वृद्धि संभव होगी। साथ ही यह आरोप भी लगाया गया कि क्लिनिक में अपात्र या अयोग्य स्टाफ कार्यरत था और उनके पास कोई वैध सरकारी लाइसेंस नहीं था।

शिकायतकर्ता ने बताया कि उसने कुल ₹5,01,000 का भुगतान किया, बावजूद इसके उसके बालों की स्थिति में कोई अंतर नहीं आया और न ही कोई स्थायी समाधान मिला।

क्लिनिक की सफाई:

डीएचआई एशियन रूट्स की ओर से कहा गया कि उन्होंने शिकायतकर्ता को इलाज से पहले ही संभावित जोखिम और परिणामों की जानकारी दे दी थी और यह स्पष्ट किया था कि हर व्यक्ति के लिए परिणाम अलग हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि चिकित्सा प्रक्रिया मानक के अनुसार पेशेवर तरीके से की गई थी और शिकायतकर्ता के विशेष अनुरोध पर मेडिकल ज़ोन से बाहर भी प्रत्यारोपण किया गया।

क्लिनिक का तर्क था कि शिकायतकर्ता ने धैर्य नहीं दिखाया और चिकित्सा सलाह की अनदेखी की, जिसके चलते उसे असंतोषजनक परिणाम मिले। अतः शिकायत खारिज की जानी चाहिए।

आयोग की टिप्पणियां और निर्णय:

आयोग ने कहा कि शिकायतकर्ता ने तीन सत्रों के बावजूद अपने बालों की स्थिति में 1% भी सुधार नहीं देखा और इस पर क्लिनिक कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाया। इसके अलावा, क्लिनिक यह साबित नहीं कर पाया कि उसके पास वैज्ञानिक और आधुनिक बाल प्रत्यारोपण प्रक्रिया के लिए कोई वैध लाइसेंस या सरकारी मंजूरी थी।

आयोग ने कहा कि बिना अनुमति और विशेषज्ञता के ऐसी प्रक्रिया करना न केवल लापरवाही है, बल्कि यह केवल आर्थिक लाभ के उद्देश्य से की गई अनुचित व्यापारिक गतिविधि है। अतः क्लिनिक को सेवा में कमी और लापरवाही का दोषी माना गया।

आयोग ने यह भी कहा कि भारत में चिकित्सा प्रक्रिया केवल पंजीकृत और योग्य चिकित्सकों द्वारा ही की जानी चाहिए। सभी क्लिनिकों को उचित सरकारी पंजीकरण और चिकित्सा मानकों का पालन करना आवश्यक है। मरीजों को प्रक्रिया के जोखिम, सीमाएं और संभावित परिणामों की संपूर्ण जानकारी देना भी अनिवार्य है।

अंतिम निर्णय और राहतें:

उपभोक्ता आयोग ने शिकायतकर्ता को निम्नलिखित राहतें प्रदान कीं:

  1. ₹5,01,000 की राशि की पूर्ण वापसी।
  2. मानसिक उत्पीड़न के लिए ₹1,00,000 की क्षतिपूर्ति।
  3. मुकदमेबाज़ी में आए खर्च के लिए ₹30,000 की राशि।

इस प्रकार, आयोग ने न केवल उपभोक्ता के हितों की रक्षा की बल्कि यह स्पष्ट संकेत भी दिया कि भारत में मेडिकल और कॉस्मेटिक प्रक्रियाओं के लिए स्पष्ट अनुमति, विशेषज्ञता और पारदर्शिता अत्यंत आवश्यक है। यह फैसला अन्य निजी क्लिनिकों के लिए भी चेतावनी है कि वे केवल योग्य और लाइसेंस प्राप्त डॉक्टरों द्वारा ही चिकित्सा सेवाएं प्रदान करें, अन्यथा उन्हें गंभीर कानूनी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

Read Meanwhile: ड्रग प्रभावशीलता और वाणिज्यिक भाषण की आज़ादी पर दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला Consumer Cannot Be Misled by False Drug Claims – Dabur vs Patanjali Case Explained

(FAQs)

1. प्रश्न: यह मामला किस उपभोक्ता आयोग में दर्ज किया गया था?
उत्तर: यह मामला नई दिल्ली जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में दर्ज किया गया था।


2. प्रश्न: इस मामले में शिकायतकर्ता ने किस क्लिनिक के खिलाफ शिकायत की थी?
उत्तर: शिकायतकर्ता डीएचआई एशियन रूट्स नामक क्लिनिक के खिलाफ शिकायत लेकर आयोग पहुँचा था।


3. प्रश्न: क्लिनिक पर कौन-कौन से आरोप लगाए गए थे?
उत्तर: क्लिनिक पर बिना लाइसेंस के बाल प्रत्यारोपण प्रक्रिया करने, अयोग्य स्टाफ से इलाज करवाने, और मरीज को संतोषजनक परिणाम न देने जैसे आरोप लगे थे।


4. प्रश्न: शिकायतकर्ता ने कुल कितनी राशि क्लिनिक को दी थी?
उत्तर: शिकायतकर्ता ने क्लिनिक को कुल ₹5,01,000 की राशि चुकाई थी।


5. प्रश्न: क्या क्लिनिक ने शिकायतकर्ता को पूरी प्रक्रिया के परिणामों के बारे में पहले ही जानकारी दी थी?
उत्तर: क्लिनिक का दावा था कि उन्होंने संभावित परिणामों की जानकारी दी थी, पर आयोग को यह स्पष्टीकरण अस्वीकार्य लगा।


6. प्रश्न: आयोग ने क्लिनिक को किस बात के लिए दोषी ठहराया?
उत्तर: आयोग ने क्लिनिक को सेवा में कमी, लापरवाही और अनुचित व्यापारिक आचरण के लिए दोषी ठहराया।


7. प्रश्न: क्या क्लिनिक के पास बाल प्रत्यारोपण की प्रक्रिया के लिए आवश्यक सरकारी मंजूरी थी?
उत्तर: नहीं, आयोग ने पाया कि क्लिनिक के पास आवश्यक लाइसेंस या सरकारी अनुमति नहीं थी।


8. प्रश्न: शिकायतकर्ता को बाल प्रत्यारोपण के कितने सत्र दिए गए थे?
उत्तर: शिकायतकर्ता को तीन सत्र प्रदान किए गए थे — दो भुगतान वाले और एक निशुल्क सुधारात्मक सत्र।


9. प्रश्न: क्या आयोग ने क्लिनिक को कोई दंडात्मक आदेश दिया?
उत्तर: हाँ, आयोग ने क्लिनिक को राशि लौटाने, मानसिक क्षतिपूर्ति और मुकदमेबाजी खर्च के रूप में कुल ₹6,31,000 देने का आदेश दिया।


10. प्रश्न: आयोग ने भारतीय चिकित्सा पद्धति के संदर्भ में कौन-सी महत्वपूर्ण टिप्पणी की?
उत्तर: आयोग ने कहा कि चिकित्सीय प्रक्रियाएं केवल योग्य और पंजीकृत डॉक्टरों द्वारा ही की जानी चाहिए और सभी क्लिनिकों को चिकित्सा मानकों का पालन करना चाहिए।


11. प्रश्न: आयोग ने मरीजों को लेकर क्या सुझाव दिया?
उत्तर: आयोग ने कहा कि मरीजों को उपचार से पूर्व पूरी जानकारी, जोखिम, सीमाएं और संभावित परिणाम स्पष्ट रूप से बताए जाने चाहिए।


12. प्रश्न: क्या आयोग ने इस तरह की चिकित्सा सेवाओं को केवल आर्थिक लाभ के उद्देश्य से की गई मान्यता दी?
उत्तर: नहीं, आयोग ने ऐसी सेवाओं को अनुचित व्यापारिक आचरण और गैर-जिम्मेदार चिकित्सा सेवा कहा जो केवल मुनाफे के उद्देश्य से की जाती हैं।


13. प्रश्न: क्या आयोग ने क्लिनिक द्वारा पेश किए गए स्पष्टीकरण को स्वीकार किया?
उत्तर: नहीं, आयोग ने क्लिनिक की सफाई को अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह संतोषजनक नहीं थी और ठोस प्रमाणों से रहित थी।


14. प्रश्न: इस फैसले का चिकित्सा सेवा प्रदाताओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: यह फैसला एक चेतावनी है कि बिना उचित अनुमति और योग्य डॉक्टरों के इलाज करना न केवल गैरकानूनी है, बल्कि इसके गंभीर कानूनी परिणाम भी हो सकते हैं।


15. प्रश्न: क्या यह मामला अन्य उपभोक्ताओं के लिए मिसाल बन सकता है?
उत्तर: हाँ, यह मामला उन सभी उपभोक्ताओं के लिए एक मिसाल है, जो गलत चिकित्सा सेवाओं के शिकार होते हैं और उन्हें न्याय की तलाश होती है।

Read Judgment: Vivek Kumar vs DHI Asian Roots Case Number: Case No. CC 1090/2013 (New Delhi)

Date of decision: 22.05.2025

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