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उपभोक्ता मंच ने वजन घटाने के झूठे दावों पर कंपनी पर लगाया जुर्माना Consumer Forum Fines for False Weight-Loss Claims
Consumer Forum Fines for False Weight-Loss Claims
गाजियाबाद स्थित जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (DCDRC) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए नोएडा की एक निजी कंपनी पर जुर्माना लगाया है। आयोग ने कंपनी को निर्देश दिया है कि वह उपभोक्ता से लिए गए ₹2,400 की राशि वापस लौटाए और साथ ही ₹10,000 का अतिरिक्त हर्जाना भी चुकाए। यह आदेश उस शिकायत के लगभग तीन साल बाद पारित किया गया है, जिसे कौशांबी निवासी एक दंपत्ति ने आयोग के समक्ष दायर किया था।
मामला कैसे शुरू हुआ
कौशांबी निवासी नीरज कुमार श्रीवास्तव और उनकी पत्नी सुरेखा श्रीवास्तव ने 19 सितंबर 2022 को आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। उनका कहना था कि उन्होंने एम/एस वेदास क्योर प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी से सोशल मीडिया पर दिखाई गई विज्ञापन सामग्री से प्रभावित होकर दवाइयाँ खरीदी थीं। विज्ञापन में दावा किया गया था कि इन दवाइयों का सेवन करने पर व्यक्ति का वजन मात्र 30 दिनों में 5 किलो तक कम हो जाएगा।
नीरज श्रीवास्तव के अनुसार, जब उनकी पत्नी ने विज्ञापन में दिए गए नंबर पर संपर्क किया, तो कंपनी के प्रतिनिधि ने उन्हें आश्वस्त किया कि दवा पूरी तरह सुरक्षित और आयुर्वेदिक है, जिसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा। इस आश्वासन के बाद उन्होंने ऑनलाइन भुगतान करके ₹2,400 में पैकेट मंगवाया।
उपभोक्ता का अनुभव
श्रीवास्तव ने आयोग को बताया कि पैकेट उन्हें तीन से चार दिन में प्राप्त हो गया, लेकिन वह सील बंद नहीं था और पैकेट पर दवा की संरचना या सामग्री का उल्लेख भी नहीं किया गया था। जब उन्होंने कंपनी से इस संबंध में जानकारी माँगी तो उन्हें भरोसा दिलाया गया कि दवा पूरी तरह सुरक्षित है और यदि नियमित रूप से एक माह तक सेवन किया जाए तो परिणाम अवश्य मिलेगा।
हालाँकि, दवा का सेवन करने के बाद सुरेखा श्रीवास्तव को सिरदर्द और ब्लड प्रेशर बढ़ने जैसी समस्याएँ होने लगीं। बावजूद इसके, उन्होंने पूरे महीने तक दवा का सेवन जारी रखा। परिणामस्वरूप न केवल उनका वजन कम नहीं हुआ, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें और बढ़ गईं।
आयोग की सुनवाई
इस पूरे मामले की सुनवाई आयोग के अध्यक्ष प्रवीण कुमार जैन तथा सदस्यों शैलजा सचान और आर.पी. सिंह की बेंच ने की। आयोग ने पाया कि कंपनी द्वारा किए गए दावे भ्रामक विज्ञापन की श्रेणी में आते हैं और इससे उपभोक्ता को सेवा में कमी (Deficiency in Service) का सामना करना पड़ा।
कंपनी ने आयोग के समक्ष अपनी ओर से तर्क दिया कि उनके सभी उत्पाद लाइसेंस प्राप्त निर्माताओं द्वारा बनाए जाते हैं और वे लंबे समय से कारोबार कर रहे हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी दलील दी कि जब तक चिकित्सकीय लापरवाही के ठोस सबूत न हों, तब तक कंपनी या डॉक्टर को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसके समर्थन में उन्होंने 2024 में आए एक सुप्रीम कोर्ट के आदेश (निरज सूद एवं अन्य बनाम जसविंदर सिंह) और उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग, देहरादून के आदेश का हवाला दिया।
लेकिन आयोग ने इन दलीलों को अस्वीकार कर दिया और कहा कि यह मामला चिकित्सकीय लापरवाही का नहीं बल्कि भ्रामक विज्ञापन और झूठे दावों का है। आयोग ने उपभोक्ता द्वारा प्रस्तुत एक 9 अप्रैल 2022 का टेक्स्ट संदेश भी रिकॉर्ड में लिया, जिसमें कंपनी ने आश्वासन दिया था कि उनका उपचार पूरी तरह प्राकृतिक, सुरक्षित और आयुर्वेदिक है और एक माह में 4-5 किलो वजन घटाने की गारंटी देता है।
आयोग का निर्णय
आयोग ने स्पष्ट किया कि कंपनी द्वारा बेची गई दवाइयाँ न तो प्रभावी परिणाम दिखाने में सक्षम थीं और न ही उपभोक्ता के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित रहीं। बल्कि, उनका सेवन करने से उपभोक्ता को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इस प्रकार, कंपनी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत दोषी ठहराया गया।
आयोग ने आदेश दिया कि कंपनी उपभोक्ता को ₹2,400 की राशि वापस लौटाए और साथ ही ₹10,000 का हर्जाना भी अदा करे। कुल ₹12,400 की राशि कंपनी को 45 दिनों के भीतर उपभोक्ता को देनी होगी। यदि समय पर भुगतान नहीं किया गया, तो बकाया राशि पर 6% वार्षिक ब्याज तब तक लगेगा जब तक भुगतान पूरा न हो जाए।
निर्णय का महत्व
यह निर्णय उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी राहत है, क्योंकि आजकल सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर वजन घटाने, त्वचा सुधार और अन्य स्वास्थ्य संबंधी भ्रामक विज्ञापनों की भरमार है। कई कंपनियाँ लोगों की कमजोरियों और इच्छाओं का फायदा उठाकर उन्हें महंगी और अप्रभावी दवाइयाँ बेच देती हैं।
इस फैसले से यह संदेश जाता है कि यदि कोई कंपनी झूठे दावे करती है और उपभोक्ता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करती है, तो उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, उपभोक्ताओं को भी जागरूक रहना होगा और किसी भी उत्पाद को खरीदने से पहले उसके लाइसेंस, संरचना और प्रामाणिकता की जाँच करनी चाहिए।
निष्कर्ष
गाजियाबाद उपभोक्ता आयोग का यह फैसला न केवल संबंधित उपभोक्ता दंपत्ति के लिए न्याय की जीत है, बल्कि यह भविष्य में अन्य कंपनियों को भी सचेत करेगा कि वे भ्रामक विज्ञापन और झूठे दावों से बचें। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का उद्देश्य ही यही है कि आम नागरिकों को गलत प्रथाओं से बचाया जाए और उन्हें न्याय दिलाया जा सके।
उपभोक्ता आयोग के फैसले से जुड़े पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. यह मामला किस बारे में था?
यह मामला वजन घटाने की झूठी दवा बेचने और भ्रामक विज्ञापन करने से जुड़ा था।
2. किस उपभोक्ता आयोग ने फैसला सुनाया?
गाजियाबाद स्थित जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (DCDRC) ने यह फैसला सुनाया।
3. शिकायत किसने दर्ज कराई थी?
शिकायत कौशांबी निवासी नीरज कुमार श्रीवास्तव और उनकी पत्नी सुरेखा श्रीवास्तव ने दर्ज कराई थी।
4. शिकायत कब दर्ज हुई थी?
शिकायत 19 सितंबर 2022 को दर्ज की गई थी।
5. दंपत्ति ने दवा पर कितने रुपये खर्च किए थे?
उन्होंने ऑनलाइन ₹2,400 में दवा खरीदी थी।
6. कंपनी ने दवा को लेकर क्या दावा किया था?
कंपनी ने दावा किया था कि यह दवा 30 दिनों में 4–5 किलो तक वजन कम कर देगी और इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा।
7. उपभोक्ता को दवा से क्या समस्याएँ हुईं?
दवा खाने के बाद उपभोक्ता को सिरदर्द और ब्लड प्रेशर बढ़ने जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ हुईं।
8. क्या दवा से वजन कम हुआ?
नहीं, एक महीने तक दवा लेने के बाद भी वजन में कोई कमी नहीं हुई।
9. आयोग ने कंपनी को क्या सजा दी?
कंपनी को उपभोक्ता को ₹2,400 की राशि लौटाने और ₹10,000 हर्जाने के रूप में देने का आदेश दिया गया।
10. कुल कितनी राशि उपभोक्ता को वापस करनी होगी?
कंपनी को कुल ₹12,400 लौटानी होगी।
11. भुगतान के लिए आयोग ने कितना समय दिया?
कंपनी को 45 दिनों के भीतर राशि चुकाने का निर्देश दिया गया है।
12. अगर समय पर भुगतान नहीं हुआ तो क्या होगा?
अगर समय पर भुगतान नहीं हुआ तो कंपनी को बकाया राशि पर 6% वार्षिक ब्याज देना होगा।
13. कंपनी ने अपनी सफाई में क्या दलील दी?
कंपनी ने कहा कि उनके सभी उत्पाद लाइसेंस प्राप्त निर्माताओं द्वारा बनाए जाते हैं और वे लंबे समय से कारोबार कर रहे हैं।
14. आयोग ने कंपनी की दलीलें क्यों खारिज कीं?
आयोग ने कहा कि यह मामला चिकित्सकीय लापरवाही का नहीं बल्कि झूठे दावों और भ्रामक विज्ञापन का है।
15. इस फैसले का उपभोक्ताओं के लिए क्या महत्व है?
यह फैसला उपभोक्ताओं को जागरूक करता है कि वे भ्रामक विज्ञापनों से सावधान रहें और जरूरत पड़ने पर कानूनी कार्रवाई करके अपने अधिकारों की रक्षा करें।
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