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Consumer forum hearing on WhatsApp possible in India: Important decision of UP State Commission भारत में व्हाट्सएप पर उपभोक्ता फोरम की सुनवाई संभव: उप्र राज्य आयोग का महत्वपूर्ण फैसला

Consumer forum hearing on WhatsApp possible in India: Important decision of UP State Commission भारत में व्हाट्सएप पर उपभोक्ता फोरम की सुनवाई संभव: उप्र राज्य आयोग का महत्वपूर्ण फैसला
डिजिटल सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियों के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय में उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (State Consumer Disputes Redressal Commission, UP) ने यह स्पष्ट किया है कि भारत में व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म भी उपभोक्ता कानूनों के तहत जवाबदेह हैं। यह निर्णय उस समय आया जब आयोग ने लखनऊ जिला उपभोक्ता फोरम के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक उपभोक्ता की शिकायत को केवल इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि व्हाट्सएप एक विदेशी कंपनी है और इसके उपभोक्ता ‘उपभोक्ता’ की परिभाषा में नहीं आते।
राज्य आयोग के अध्यक्ष श्री सुशील कुमार और सदस्य श्रीमती सुधा उपाध्याय ने इस मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि व्हाट्सएप एक सेवा प्रदाता कंपनी है, और भारत में अपनी सेवाएं उपलब्ध कराकर यह भारतीय उपभोक्ताओं के प्रति जवाबदेह बनती है। आयोग ने कहा कि यह तर्क अस्वीकार्य है कि केवल इसलिए कि उपभोक्ता ने सीधे रूप से कोई शुल्क नहीं दिया है, वह उपभोक्ता कानूनों के तहत सुरक्षा पाने का अधिकारी नहीं हो सकता।

यह मामला पूर्व आईपीएस अधिकारी और आज़ाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर द्वारा दायर एक अपील से संबंधित था। उन्होंने यह शिकायत की थी कि व्हाट्सएप की सेवाएं लगभग छह घंटे तक बाधित रहीं, जिससे उनके कामकाज में गंभीर बाधा उत्पन्न हुई। इस आधार पर उन्होंने क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए उपभोक्ता शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि, लखनऊ जिला उपभोक्ता फोरम ने यह कहते हुए शिकायत को खारिज कर दिया था कि व्हाट्सएप एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी है और ठाकुर ने इसकी सेवाओं के लिए सीधे कोई भुगतान नहीं किया है।
राज्य आयोग ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि किसी भी डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा उपभोक्ताओं को संवाद, जानकारी का आदान-प्रदान तथा अन्य सुविधाएं प्रदान करना एक सेवा है, और इससे उपभोक्ता जुड़ते हैं। ऐसे में यह प्लेटफॉर्म “सेवा प्रदाता” की श्रेणी में आता है, चाहे वह सेवा निःशुल्क क्यों न हो। आयोग ने यह भी कहा कि जब एक मंच भारत में अपनी सेवाएं दे रहा हो, तो उसके खिलाफ भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत शिकायत करना पूर्णतः वैध है।
राज्य आयोग ने जिला उपभोक्ता फोरम के आदेश को रद्द करते हुए निर्देश दिया कि अमिताभ ठाकुर की शिकायत को एक उपभोक्ता शिकायत के रूप में पंजीकृत किया जाए और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अंतर्गत 90 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर इस पर निर्णय लिया जाए।
आयोग ने अपने आदेश में कहा, “जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित आदेश को निरस्त किया जाता है और यह अपेक्षा की जाती है कि शिकायतकर्ता की ओर से प्रस्तुत उपभोक्ता शिकायत को पंजीकृत कर 90 दिनों की अवधि में निस्तारित किया जाए।”
यह फैसला न केवल व्हाट्सएप के खिलाफ बल्कि भारत में संचालित होने वाले अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए भी एक महत्वपूर्ण नज़ीर बन सकता है। यह निर्णय दर्शाता है कि अब डिजिटल सेवा प्रदाताओं की जिम्मेदारियों को गंभीरता से लिया जा रहा है, और भारत में उपभोक्ताओं के अधिकारों को डिजिटल क्षेत्र में भी कानूनी संरक्षण मिल रहा है। चाहे कोई सेवा निशुल्क हो या सशुल्क, यदि उसका लाभ भारत में उपभोक्ता उठा रहे हैं और सेवा में कोई खामी आती है, तो कंपनी को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
इस फैसले से भविष्य में अन्य उपभोक्ताओं को भी यह हक मिलेगा कि वे ऑनलाइन सेवाओं में कमी या बाधा आने पर संबंधित कंपनियों के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत कर सकें। यह डिजिटल उपभोक्ता अधिकारों की दिशा में एक मजबूत कदम है, जो यह सुनिश्चित करता है कि उपभोक्ता केवल पारंपरिक वस्तुओं और सेवाओं तक सीमित न रहकर, अब ऑनलाइन और डिजिटल सेवाओं के संबंध में भी अपने अधिकारों का उपयोग कर सकें।
भारत में व्हाट्सएप पर उपभोक्ता फोरम की सुनवाई संभव: उप्र राज्य आयोग का महत्वपूर्ण फैसला

डिजिटल सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियों के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय में उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (State Consumer Disputes Redressal Commission, UP) ने यह स्पष्ट किया है कि भारत में व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म भी उपभोक्ता कानूनों के तहत जवाबदेह हैं। यह निर्णय उस समय आया जब आयोग ने लखनऊ जिला उपभोक्ता फोरम के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक उपभोक्ता की शिकायत को केवल इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि व्हाट्सएप एक विदेशी कंपनी है और इसके उपभोक्ता ‘उपभोक्ता’ की परिभाषा में नहीं आते।
राज्य आयोग के अध्यक्ष श्री सुशील कुमार और सदस्य श्रीमती सुधा उपाध्याय ने इस मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि व्हाट्सएप एक सेवा प्रदाता कंपनी है, और भारत में अपनी सेवाएं उपलब्ध कराकर यह भारतीय उपभोक्ताओं के प्रति जवाबदेह बनती है। आयोग ने कहा कि यह तर्क अस्वीकार्य है कि केवल इसलिए कि उपभोक्ता ने सीधे रूप से कोई शुल्क नहीं दिया है, वह उपभोक्ता कानूनों के तहत सुरक्षा पाने का अधिकारी नहीं हो सकता।
यह मामला पूर्व आईपीएस अधिकारी और आज़ाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर द्वारा दायर एक अपील से संबंधित था। उन्होंने यह शिकायत की थी कि व्हाट्सएप की सेवाएं लगभग छह घंटे तक बाधित रहीं, जिससे उनके कामकाज में गंभीर बाधा उत्पन्न हुई। इस आधार पर उन्होंने क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए उपभोक्ता शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि, लखनऊ जिला उपभोक्ता फोरम ने यह कहते हुए शिकायत को खारिज कर दिया था कि व्हाट्सएप एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी है और ठाकुर ने इसकी सेवाओं के लिए सीधे कोई भुगतान नहीं किया है।
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राज्य आयोग ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि किसी भी डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा उपभोक्ताओं को संवाद, जानकारी का आदान-प्रदान तथा अन्य सुविधाएं प्रदान करना एक सेवा है, और इससे उपभोक्ता जुड़ते हैं। ऐसे में यह प्लेटफॉर्म “सेवा प्रदाता” की श्रेणी में आता है, चाहे वह सेवा निःशुल्क क्यों न हो। आयोग ने यह भी कहा कि जब एक मंच भारत में अपनी सेवाएं दे रहा हो, तो उसके खिलाफ भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत शिकायत करना पूर्णतः वैध है।
राज्य आयोग ने जिला उपभोक्ता फोरम के आदेश को रद्द करते हुए निर्देश दिया कि अमिताभ ठाकुर की शिकायत को एक उपभोक्ता शिकायत के रूप में पंजीकृत किया जाए और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अंतर्गत 90 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर इस पर निर्णय लिया जाए।
आयोग ने अपने आदेश में कहा, “जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित आदेश को निरस्त किया जाता है और यह अपेक्षा की जाती है कि शिकायतकर्ता की ओर से प्रस्तुत उपभोक्ता शिकायत को पंजीकृत कर 90 दिनों की अवधि में निस्तारित किया जाए।”
यह फैसला न केवल व्हाट्सएप के खिलाफ बल्कि भारत में संचालित होने वाले अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए भी एक महत्वपूर्ण नज़ीर बन सकता है। यह निर्णय दर्शाता है कि अब डिजिटल सेवा प्रदाताओं की जिम्मेदारियों को गंभीरता से लिया जा रहा है, और भारत में उपभोक्ताओं के अधिकारों को डिजिटल क्षेत्र में भी कानूनी संरक्षण मिल रहा है। चाहे कोई सेवा निशुल्क हो या सशुल्क, यदि उसका लाभ भारत में उपभोक्ता उठा रहे हैं और सेवा में कोई खामी आती है, तो कंपनी को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
इस फैसले से भविष्य में अन्य उपभोक्ताओं को भी यह हक मिलेगा कि वे ऑनलाइन सेवाओं में कमी या बाधा आने पर संबंधित कंपनियों के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत कर सकें। यह डिजिटल उपभोक्ता अधिकारों की दिशा में एक मजबूत कदम है, जो यह सुनिश्चित करता है कि उपभोक्ता केवल पारंपरिक वस्तुओं और सेवाओं तक सीमित न रहकर, अब ऑनलाइन और डिजिटल सेवाओं के संबंध में भी अपने अधिकारों का उपयोग कर सकें।
Register a Consumer Complaint with National Consumer Helpline – NCH
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