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Consumers legal rights in case of non-payment of EMI, EMI न भरने पर उपभोक्ताओं के कानूनी अधिकार: उत्पीड़न से बचाव और समाधान

Consumers legal rights in case of non-payment of EMI

Consumers legal rights in case of non-payment of EMI, EMI न भरने पर उपभोक्ताओं के कानूनी अधिकार: उत्पीड़न से बचाव और समाधान

ईएमआई और गैर-भुगतान की अवधारणा

जब कोई व्यक्ति बैंक या किसी अन्य वित्तीय संस्था से ऋण लेता है, तो वह उसे नियमित रूप से मासिक किस्तों (EMI – ईएमआई) के रूप में चुकाता है। ईएमआई में दो भाग होते हैं – मूलधन (Principal) और ब्याज (Interest)। यह एक नियोजित और व्यवस्थित तरीका होता है ऋण चुकाने का। हालांकि, जब उधारकर्ता ईएमआई का भुगतान नहीं कर पाता, तो इससे न केवल आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि उसका क्रेडिट स्कोर भी गिरता है, जुर्माने लगते हैं और कई बार कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है।

कर्ज वसूली में उत्पीड़न – एक बढ़ती हुई समस्या

ऋण न चुका पाने की स्थिति में उपभोक्ताओं को अक्सर वसूली एजेंटों द्वारा परेशान किया जाता है। कई बार यह उत्पीड़न इस हद तक बढ़ जाता है कि व्यक्ति मानसिक तनाव में आ जाता है। फोन पर बार-बार कॉल करना, धमकाना, डराना, और समाज में अपमानित करना जैसी हरकतें आम हो गई हैं। यह न केवल अनैतिक है, बल्कि भारतीय कानून के तहत यह पूरी तरह से अवैध भी है।

भारत में उपभोक्ता संरक्षण के लिए कानूनी ढांचा

भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए एक मजबूत और स्पष्ट कानूनी ढांचा तैयार किया है, जो उन्हें ऐसे दुर्व्यवहारों से बचाता है।

1. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दिशा-निर्देश

भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘फेयर प्रैक्टिसेज कोड’ (Fair Practices Code) के तहत सभी वित्तीय संस्थानों को कुछ नैतिक दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य किया है:

  • सम्मानजनक व्यवहार: वसूली एजेंटों को उधारकर्ताओं से बात करते समय विनम्रता और मर्यादा बनाए रखनी चाहिए।
  • समुचित समय पर संपर्क: वसूली के कॉल केवल सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे तक ही किए जाने चाहिए।
  • गोपनीयता बनाए रखना: किसी भी ग्राहक की ऋण स्थिति या डिफॉल्ट की जानकारी को सार्वजनिक रूप से साझा करना पूरी तरह से वर्जित है।
  • कानूनी पारदर्शिता: उधारकर्ता को उसके कानूनी अधिकारों और संभावित कार्यवाही के बारे में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए।

2. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019

यह अधिनियम उपभोक्ताओं को उन सभी असमान और अन्यायपूर्ण व्यापारिक व्यवहारों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का अधिकार देता है जो उन्हें मानसिक, सामाजिक या आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाते हैं। यदि कोई बैंक या वसूली एजेंट जबरदस्ती, धमकी या अपमानजनक भाषा का प्रयोग करता है, तो उपभोक्ता जिला, राज्य या राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम (जैसे NCDRC) में अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है।

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उपभोक्ताओं के लिए बचाव के उपाय

यदि आप वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं और समय पर ईएमआई चुकाना संभव नहीं हो पा रहा है, तो निम्नलिखित कदम उठाकर आप अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं:

  • अपने अधिकार जानें: कानूनी जानकारी ही सबसे पहला और प्रभावी हथियार है।
  • सभी रिकॉर्ड सुरक्षित रखें: बैंक के साथ सभी संवाद – ईमेल, पत्र, कॉल रिकॉर्ड – संजोकर रखें ताकि आगे कानूनी कार्रवाई के दौरान यह प्रमाण बन सकें।
  • सीधा संवाद करें: बैंक या वित्तीय संस्था से खुलकर बात करें और ऋण पुनर्गठन (Loan Restructuring) या वैकल्पिक भुगतान योजना (Alternative Repayment Plan) पर विचार करें।
  • कानूनी सलाह लें: अगर उत्पीड़न जारी रहता है, तो किसी उपभोक्ता कानून विशेषज्ञ या अधिवक्ता से सलाह लें।

उपलब्ध कानूनी विकल्प

अगर किसी उपभोक्ता के साथ गैरकानूनी वसूली प्रक्रिया अपनाई जाती है, तो उसके पास कई विकल्प उपलब्ध हैं:

  • शिकायत दर्ज करें: आप RBI, बैंकिंग लोकपाल या उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
  • नागरिक मुकदमा दायर करें: मानसिक उत्पीड़न, मानहानि या आय की हानि के लिए कोर्ट में मुआवजे का दावा कर सकते हैं।
  • स्थगन आदेश प्राप्त करें: अदालत से अनुरोध करके बैंक या एजेंट को उत्पीड़न से रोकने का आदेश (injunction) प्राप्त किया जा सकता है।
  • नियामक कार्रवाई: यदि बैंक या वित्तीय संस्था RBI के नियमों का उल्लंघन करती है, तो उस पर जुर्माना या लाइसेंस रद्द करने जैसी कार्रवाई हो सकती है।

उपभोक्ताओं की जिम्मेदारियां

कानून उपभोक्ताओं की सुरक्षा करता है, लेकिन साथ ही कुछ जिम्मेदारियों का पालन करना भी आवश्यक है:

  • सकारात्मक संवाद बनाए रखें: जैसे ही आपको अपनी आर्थिक स्थिति बिगड़ती दिखे, बैंक को सूचित करें।
  • सलाह लें: एनजीओ या पेशेवर वित्तीय सलाहकारों से परामर्श लेकर कर्ज प्रबंधन की योजना बनाएं।
  • सूचनाओं से अपडेट रहें: अपने ऋण समझौतों और बैंकिंग से जुड़े नए नियमों को नियमित रूप से पढ़ते रहें।

कोविड-19 का प्रभाव

कोरोना महामारी के दौरान देश की वित्तीय प्रणाली पर भारी दबाव पड़ा। लेकिन RBI ने समझदारी दिखाते हुए EMI पर मोराटोरियम की सुविधा दी, जिससे लाखों उपभोक्ताओं को अस्थायी राहत मिली और उन्हें बिना किसी दंड के ईएमआई स्थगित करने का अवसर मिला। यह दर्शाता है कि उपभोक्ता संरक्षण की दिशा में लचीला और मानवीय दृष्टिकोण अपनाना कितना आवश्यक है।

निष्कर्ष

ईएमआई का भुगतान न कर पाना एक गंभीर समस्या हो सकती है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि उपभोक्ता की गरिमा और अधिकारों का हनन हो। भारतीय कानून ऐसे सभी कृत्यों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाता है और सुनिश्चित करता है कि कर्ज वसूली की प्रक्रिया नैतिक और कानूनी ढांचे में ही की जाए।

हमें एक ऐसा वित्तीय वातावरण बनाना चाहिए, जहां सहानुभूति, उत्तरदायित्व और कानून के प्रति सम्मान एक साथ चलें। यदि हम उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करें और उन्हें सही उपायों के बारे में जानकारी दें, तो यह समाज और अर्थव्यवस्था – दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।

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