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Consumer Commission’s big decision on denial of toilet facility at petrol pump पेट्रोल पंप पर शौचालय की सुविधा से इनकार पर उपभोक्ता आयोग का बड़ा फैसला

Denial of toilet facility at petrol pump
पेट्रोल पंप पर शौचालय की सुविधा से इनकार पर उपभोक्ता आयोग का बड़ा फैसला
हाल ही में केरल राज्य के पथनमथिट्टा जिले में स्थित जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के एक डीलर को अनुचित व्यापार व्यवहार और सेवा में कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया। यह मामला उस समय सुर्खियों में आया जब एक महिला उपभोक्ता को पेट्रोल पंप पर शौचालय उपयोग करने से मना कर दिया गया। आयोग के इस निर्णय ने उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण उदाहरण पेश किया है।
घटनाक्रम का सारांश:
दिनांक 8 मई 2024 को, एक महिला शिकायतकर्ता कासरगोड से अपने गृह नगर पथनमथिट्टा लौट रही थी। इस दौरान उन्हें रास्ते में स्थित “थेन्नकलिल पेट्रोलियम” नामक ईंधन स्टेशन पर अपने वाहन में पेट्रोल भरवाना पड़ा। साथ ही, उन्हें अत्यावश्यक रूप से शौचालय का उपयोग करने की आवश्यकता थी। वाहन में ईंधन भरवाने के बाद वह जब शौचालय की ओर गईं तो उन्होंने पाया कि दरवाजा बंद है।
शिकायतकर्ता ने तत्क्षण वहां मौजूद कर्मचारियों से अनुरोध किया कि वे शौचालय खोलें क्योंकि स्थिति अत्यावश्यक थी। लेकिन कर्मचारियों ने यह कहकर मना कर दिया कि शौचालय प्रबंधक द्वारा बंद कर दिया गया है और उसका उपयोग अब ग्राहकों के लिए संभव नहीं है। साथ ही, यह भी दावा किया गया कि शौचालय खराब अवस्था में है, इस कारण से उसे बंद रखा गया है।
शिकायतकर्ता ने इस पर पंप पर अंकित नंबरों पर प्रबंधक और डीलर को दो बार कॉल किया, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। जब उन्होंने फिर से आग्रह किया, तो स्टाफ ने किसी भी प्रकार की सहानुभूति नहीं दिखाई। महिला ने बार-बार यह स्पष्ट किया कि अन्य किसी वैकल्पिक पेट्रोल पंप तक पहुँचना कठिन है क्योंकि उस मार्ग पर सड़क की मरम्मत का कार्य चल रहा था।
स्थिति विकट होती देख, शिकायतकर्ता ने आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर 112 पर कॉल करके पुलिस सहायता ली। पुलिस के आने के बावजूद पेट्रोल पंप कर्मचारियों ने शौचालय खोलने से मना कर दिया, जिसके बाद पुलिस को दरवाजा तोड़कर जबरन शौचालय खुलवाना पड़ा। इसके पश्चात यह स्पष्ट हुआ कि शौचालय अच्छी स्थिति में था और उपयोग के लिए पूरी तरह से उपयुक्त था, जैसा कि कर्मचारियों के दावों के विपरीत साबित हुआ।
शिकायतकर्ता ने इस पूरी घटना को अत्यधिक अपमानजनक और मानसिक तनावदायक बताया, और इसी के चलते उन्होंने जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज की।
प्रतिवादियों की ओर से प्रस्तुत तर्क:
प्रतिवादी क्रमांक 1, जो पेट्रोल पंप का डीलर था, ने अपने उत्तर में बताया कि शौचालय को अस्थायी रूप से बंद किया गया था क्योंकि उसका सेप्टिक टैंक ओवरफ्लो हो गया था और उसकी मरम्मत चल रही थी। डीलर का कहना था कि प्रभारी अधिकारी ने शिकायतकर्ता को पास की अन्य किसी संपत्ति में वैकल्पिक शौचालय की व्यवस्था कराने का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता और वाहन में मौजूद अन्य लोग स्टाफ से बहस कर रहे थे और पंप कर्मचारियों ने उनकी आवश्यकता को नज़रअंदाज़ नहीं किया।
वहीं, प्रतिवादी क्रमांक 2 से 4—प्रबंधक, बिक्री प्रमुख और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के अध्यक्ष—ने यह तर्क दिया कि शिकायतकर्ता और उनके बीच कोई प्रत्यक्ष अनुबंधिक संबंध नहीं है और इसलिए उनके खिलाफ कोई शिकायत बनती ही नहीं है। उन्होंने कहा कि पेट्रोल पंप पर शौचालय सुविधा मुफ्त में उपलब्ध कराई जाती है, इसलिए सेवा की कमी का आरोप उन पर लागू नहीं होता।
पुलिस हस्तक्षेप
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए शिकायतकर्ता ने 112 आपातकालीन नंबर पर कॉल करके केरल पुलिस को बुलाया। पुलिस के आने के बाद भी कर्मचारियों ने शौचालय खोलने से मना कर दिया, जिसके बाद पुलिस को दरवाज़ा जबरन खुलवाना पड़ा। जांच में यह सामने आया कि शौचालय पूरी तरह से उपयोग योग्य स्थिति में था और कर्मचारियों द्वारा दिया गया कारण भ्रामक था।
इस घटनाक्रम से महिला को न केवल मानसिक तनाव बल्कि मानवीय गरिमा का अपमान भी झेलना पड़ा, जो कि उपभोक्ता संरक्षण कानून के अंतर्गत एक गंभीर उल्लंघन है।
आयोग में शिकायत और पक्षों के तर्क
महिला ने आयोग में शिकायत दर्ज करवाई, जिसमें उन्होंने पेट्रोल पंप द्वारा बुनियादी सुविधाएं न देने और अपमानजनक व्यवहार का उल्लेख किया।
विपरीत पक्ष (डीलर) ने यह तर्क दिया कि शौचालय सेप्टिक टैंक ओवरफ्लो के कारण अस्थायी रूप से बंद किया गया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि वे शिकायतकर्ता को पास की संपत्ति में शौचालय सुविधा देने को तैयार थे, लेकिन शिकायतकर्ता ने बहस शुरू कर दी।
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के अन्य अधिकारियों ने यह तर्क दिया कि पेट्रोल पंप और ग्राहक के बीच कोई सीधा अनुबंध नहीं है, इसलिए शिकायतकर्ता उपभोक्ता की परिभाषा में नहीं आतीं।
आयोग का निर्णय
आयोग ने इन सभी तर्कों को खारिज करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि प्रत्येक पेट्रोल पंप पर शौचालय, पीने का पानी, प्राथमिक उपचार बॉक्स, सुरक्षा उपकरण, टायर एयर सुविधा और शिकायत पुस्तिका जैसी सुविधाएं मुफ्त में उपलब्ध कराना अनिवार्य है।
आयोग ने यह भी कहा कि बुनियादी मानवीय आवश्यकता जैसे शौचालय का उपयोग करना एक वैधानिक अधिकार है और इसे रोकना अनुचित व्यापार व्यवहार की श्रेणी में आता है।
मुआवज़े का आदेश
आयोग ने डीलर को आदेश दिया कि वह शिकायतकर्ता को ₹1,50,000 का मानसिक क्षति का मुआवज़ा और ₹15,000 की विधिक लागत अदा करे। साथ ही, यह राशि 10% वार्षिक ब्याज के साथ शिकायत दर्ज होने की तारीख से देनी होगी।
निष्कर्ष
इस निर्णय से स्पष्ट है कि उपभोक्ता आयोग अब केवल उत्पादों की गुणवत्ता ही नहीं बल्कि सेवाओं की उपलब्धता और मानवीय गरिमा की रक्षा को भी गंभीरता से ले रहा है।
इस केस ने पेट्रोल पंप संचालकों को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि यदि वे अनिवार्य बुनियादी सुविधाएं प्रदान नहीं करेंगे, तो उन्हें कानूनी दंड भुगतना पड़ेगा।
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