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No Legal Duty to Provide Gravy with Porotta: CDRC Ernakulam Rules परांठा और बीफ फ्राई के साथ ग्रेवी न देना रेस्तरां की सेवा में कमी नहीं: सीडीआरसी एर्नाकुलम का फैसला
No Legal Duty to Provide Gravy with Porotta
परिचय
हाल ही में एर्नाकुलम स्थित कंज़्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन (CDRC) ने एक महत्वपूर्ण उपभोक्ता विवाद में यह स्पष्ट किया है कि किसी रेस्तरां पर यह कानूनी या संविदात्मक रूप से अनिवार्य नहीं है कि वह हर व्यंजन के साथ ग्रेवी भी परोसे। यह निर्णय एक उपभोक्ता द्वारा दाखिल की गई शिकायत के बाद आया, जिसमें उसने आरोप लगाया कि परांठा और बीफ फ्राई के साथ ग्रेवी न देने से उसे मानसिक कष्ट हुआ और सेवा में कमी हुई।
मामले की पृष्ठभूमि
शिकायतकर्ता ने शिकायत दर्ज कराई कि उसने जिस रेस्तरां से परांठा और बीफ फ्राई का ऑर्डर किया, वहां ग्रेवी नहीं दी गई। उसके अनुरोध के बावजूद वेटर, मैनेजर और रेस्तरां के मालिक ने स्पष्ट कर दिया कि यह रेस्तरां की नीति है कि सूखे व्यंजन के साथ ग्रेवी नहीं दी जाती। इससे शिकायतकर्ता को भोजन करने में असुविधा हुई और उसने इसे सेवा में कमी बताया।
शिकायत का विवरण
शिकायतकर्ता ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 35 के अंतर्गत शिकायत दर्ज की और मानसिक पीड़ा के लिए ₹1,00,000 तथा कानूनी खर्चों के लिए ₹10,000 के मुआवजे की मांग की। उसने यह दावा किया कि रेस्तरां की यह नीति अनुचित व्यापार व्यवहार है और यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(11) के तहत “सेवा में कमी” की श्रेणी में आती है।
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धारा 2(11) की परिभाषा:
“सेवा में कमी” का अर्थ है किसी सेवा की गुणवत्ता, प्रकृति या प्रदर्शन के तरीके में ऐसी कोई भी कमी, दोष या अपूर्णता जो किसी कानून के अंतर्गत अपेक्षित हो या जिसे संविदा के अंतर्गत पूरा किया जाना हो। इसमें यह भी शामिल है:
(i) उपभोक्ता को हानि पहुँचाने वाली लापरवाही या कोई कार्य;
(ii) उपभोक्ता से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी को जानबूझकर छिपाना।
शिकायतकर्ता ने अधिनियम की धारा 2(22) और 21 के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 का भी हवाला देते हुए तर्क दिया कि आवश्यक खाद्य घटकों के बिना भोजन परोसना मानसिक पीड़ा का कारण बना।
सीडीआरसी की सुनवाई और निर्णय
कंज़्यूमर फोरम ने मामले की सुनवाई करते हुए यह पाया कि शिकायतकर्ता ने भोजन की गुणवत्ता, मात्रा या सुरक्षा मानकों पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी। उसने भोजन खाया, मूल्य चुकाया और बाद में केवल ग्रेवी न दिए जाने को लेकर आपत्ति दर्ज की।
कमीशन ने यह कहा कि रेस्तरां और ग्राहक के बीच ऐसा कोई स्पष्ट या परोक्ष अनुबंध नहीं था, जिससे यह आवश्यक हो कि हर सूखे व्यंजन के साथ ग्रेवी दी जाए। जब कोई संविदात्मक या कानूनी दायित्व नहीं था, तो रेस्तरां की आंतरिक नीति को “सेवा में कमी” नहीं माना जा सकता।
अनुबंधिक संबंध की अनुपस्थिति
कमीशन ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में ग्राहक और रेस्तरां के बीच कोई ऐसा लेन-देन संबंध नहीं था, जिससे यह कहा जा सके कि ग्रेवी देना आवश्यक था। केवल उपभोक्ता की उम्मीद या सुविधा को कानूनी दायित्व नहीं माना जा सकता।
झूठे प्रचार का कोई साक्ष्य नहीं
मामले की सुनवाई के दौरान यह भी स्पष्ट हुआ कि रेस्तरां ने अपने मेनू या विज्ञापन में यह वादा नहीं किया था कि सभी व्यंजनों के साथ ग्रेवी दी जाएगी। इसलिए रेस्तरां द्वारा कोई झूठा प्रचार या उपभोक्ता को गुमराह करने वाला कार्य नहीं किया गया।
निष्कर्ष: शिकायत खारिज
इन सभी तथ्यों और कानूनी तर्कों के आधार पर सीडीआरसी एर्नाकुलम ने यह निर्णय लिया कि रेस्तरां द्वारा ग्रेवी न देना न तो सेवा में कमी है, न ही कोई अनुचित व्यापारिक आचरण। जब तक कोई स्पष्ट कानूनी या संविदात्मक दायित्व न हो, तब तक रेस्तरां की नीति को चुनौती नहीं दी जा सकती। अतः, शिकायत को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया गया। यह मामला उन उपभोक्ताओं और रेस्तरां मालिकों दोनों के लिए महत्वपूर्ण है जो छोटे मुद्दों को लेकर कानूनी प्रक्रिया में उलझते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का उद्देश्य उपभोक्ताओं को सुरक्षा देना है, लेकिन हर असुविधा को “सेवा में कमी” नहीं माना जा सकता। यदि कोई सेवा कानूनी या संविदात्मक रूप से बाध्य नहीं है, तो उसे न दिए जाने पर मुआवजा नहीं मिल सकता।
कंस्यूमर मामले दाखिल करने का पोर्टल
इस निर्णय से सम्बंधित FAQ
- क्या रेस्तरां पर ग्रेवी देना कानूनी रूप से अनिवार्य है?
नहीं, जब तक कोई अनुबंध या नियम न हो, रेस्तरां पर ग्रेवी देना अनिवार्य नहीं होता। - सीडीआरसी एर्नाकुलम ने इस मामले में क्या निर्णय दिया?
उसने कहा कि ग्रेवी न देना सेवा में कमी नहीं है, इसलिए शिकायत खारिज कर दी गई। - ग्रेवी न देने को सेवा में कमी क्यों नहीं माना गया?
क्योंकि कोई संविदात्मक या कानूनी दायित्व नहीं था जो रेस्तरां को ग्रेवी देने के लिए बाध्य करता। - उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(11) क्या कहती है?
यह सेवा में कमी को परिभाषित करती है जिसमें लापरवाही या जानकारी छुपाना शामिल है। - क्या उपभोक्ता मानसिक पीड़ा के लिए मुआवजा प्राप्त कर सकता है?
केवल तब जब सेवा में कोई कानूनी कमी या गलत व्यवहार सिद्ध हो। - क्या ग्राहक और रेस्तरां के बीच अनुबंध जरूरी है?
हाँ, शिकायत करने के लिए उपभोक्ता और सेवा प्रदाता के बीच वैध लेन-देन या अनुबंध आवश्यक होता है। - क्या रेस्तरां की आंतरिक नीति को सेवा में कमी माना जा सकता है?
नहीं, जब तक वह नीति कानूनी या संविदात्मक बाध्यता न हो। - क्या खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत ग्रेवी देना अनिवार्य है?
नहीं, खाद्य सुरक्षा अधिनियम में ग्रेवी देने की कोई विशिष्ट आवश्यकता नहीं है। - क्या उपभोक्ता को हर बार ग्रेवी की मांग करनी चाहिए?
नहीं, अगर रेस्तरां की नीति में ग्रेवी न देने का स्पष्ट नियम हो तो। - क्या रेस्तरां का वादा करना जरूरी है कि हर डिश के साथ ग्रेवी मिलेगी?
हाँ, अगर मेनू या विज्ञापन में ऐसा वादा किया गया हो तभी। - क्या उपभोक्ता शिकायतों में व्यक्तिगत पसंद को ध्यान में रखा जाता है?
नहीं, कानूनी मामलों में केवल सेवा की गुणवत्ता और नियमों का पालन देखा जाता है। - क्या ग्राहक बिना ग्रेवी के सूखे व्यंजन का विरोध कर सकता है?
ग्राहक कर सकता है, लेकिन कानूनी दायित्व तभी बनेगा जब अनुबंध में इसका जिक्र हो। - क्या यह मामला अन्य रेस्तरां विवादों के लिए उदाहरण हो सकता है?
हाँ, यह स्पष्ट करता है कि कानूनी दायित्व के बिना सेवा में कमी नहीं मानी जाएगी। - क्या शिकायतकर्ता ने गुणवत्ता या सुरक्षा पर कोई सवाल उठाया था?
नहीं, शिकायत केवल ग्रेवी न देने को लेकर थी। - सीडीआरसी का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में क्या रोल है?
यह उपभोक्ता विवादों का निपटारा करता है और सेवा में कमी का फैसला करता है।
Judgement; Shibu.S Vayalakath Vs Manager, The Persian Table Restaurant
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