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Supreme Court Ends 18 Year Wait: अब उपभोक्ता फोरम के सभी आदेश होंगे प्रभावी
Supreme Court Ends 18 Year Wait: अब उपभोक्ता फोरम के सभी आदेश होंगे प्रभावी
वाद-प्रतिवाद का इतिहास
- मामला पुणे के Palm Groves Cooperative Housing Society के फ्लैट ख़रीदारों से जुड़ा था।
- वर्ष 2007 में जिला उपभोक्ता फोरम ने बिल्डर को सोसाइटी के पक्ष में deed of conveyance निष्पादित करने का आदेश दिया।
- बिल्डर ने इस आदेश को ऊपरी फोरम्स में चुनौती दी। वहाँ यह दलील दी गई कि 2002 के संशोधन के बाद उपभोक्ता फोरम केवल अंतरिम आदेशों (interim orders) को ही निष्पादित कर सकते हैं, अंतिम आदेश लागू नहीं कर सकते।
- परिणामस्वरूप, उपभोक्ता फोरम के अंतिम आदेश वर्षों तक कागज़ी ही रह गए और उपभोक्ताओं को वास्तविक न्याय नहीं मिला।
याचिकाकर्ता (फ्लैट ख़रीदार/सोसाइटी) के तर्क
- उन्होंने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 25 मूल रूप से हर आदेश (every order) को निष्पादित करने की शक्ति देती थी।
- 2002 के संशोधन में त्रुटिपूर्ण बदलाव कर इसे केवल अंतरिम आदेश तक सीमित कर दिया गया, जिससे उपभोक्ताओं का अधिकार छिन गया।
- उनका दावा था कि 2019 तक यही स्थिति रही और इस दौरान लाखों उपभोक्ता मात्र “कागज़ी फैसलों” के सहारे रह गए।
प्रतिवादी (बिल्डर और संशोधन समर्थक दृष्टिकोण) के तर्क
- उनका कहना था कि 2002 के संशोधन के बाद विधायी मंशा यही थी कि उपभोक्ता फोरम केवल अंतरिम आदेश लागू कर सकते हैं और अंतिम आदेशों के लिए दीवानी न्यायालय का सहारा लेना होगा।
- उन्होंने उच्च फोरम्स के पुराने निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें 2002 संशोधन को सही ठहराते हुए अंतिम आदेशों की सीधी कार्यवाही को अस्वीकार कर दिया गया था।
दोनों पक्षों द्वारा उद्धृत और विचारित निर्णय
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की मूल धारा 25 और 2002 संशोधन की तुलना की गई।
- अनेक उच्च फोरम्स के उन पुराने निर्णयों पर चर्चा हुई जिनमें 2002 संशोधन के आधार पर निष्पादन प्रार्थना पत्र (execution petition) खारिज कर दिए गए थे।
- न्यायालय ने यह भी नोट किया कि 2002 संशोधन के परिणामस्वरूप जिला फोरम में लंबित निष्पादन मामलों की संख्या 1992–2002 में 1,470 से बढ़कर 2003–2019 में 42,118 और 2020–2024 में 56,578 तक पहुँच गई।
सर्वोच्च न्यायालय का निष्कर्ष
- 2002 संशोधन एक विधायी भूल थी, जिसने उपभोक्ताओं के अधिकार कमज़ोर कर दिए।
- अदालत ने कहा कि धारा 25 को पढ़ते समय “interim order” शब्द का अर्थ “every order” माना जाना चाहिए। अर्थात उपभोक्ता फोरम अपने अंतिम आदेश भी लागू करा सकते हैं।
- जिला फोरम के मूल आदेश (2007) को मान्य ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऊपरी मंचों के विपरीत आदेशों को रद्द कर दिया।
- न्यायालय ने कहा कि उपभोक्ता को न्याय कागज़ पर ही नहीं, वास्तविक जीवन में भी मिलना चाहिए।
- NCDRC के चेयरमैन को लंबित निष्पादन मामलों के शीघ्र निपटारे हेतु ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए गए और वरिष्ठ अधिवक्ता जयहदीप गुप्ता को amicus curiae नियुक्त किया गया ताकि प्रवर्तन व्यवस्था का और अध्ययन हो सके।
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यहाँ सुप्रीम कोर्ट के उपभोक्ता फोरम निष्पादन निर्णय से संबंधित 15 FAQs प्रस्तुत हैं:
- उपभोक्ता फोरम के आदेश क्यों निष्पादित नहीं हो पाते थे?
- 2002 के संशोधन में धारा 25 में “हर आदेश” की जगह “अंतरिम आदेश” लिखा गया, जिससे अंतिम आदेश निष्पादित नहीं हो पा रहे थे।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस संशोधन के बारे में क्या कहा?
- इसे विधायी भूल माना और कहा कि धारा 25 में “हर आदेश” लागू किया जाना चाहिए।
- इस फैसले का उपभोक्ताओं के लिए क्या लाभ है?`
- उपभोक्ता फोरम के अंतिम आदेश भी अब न्यायालय की तरह निष्पादित होंगे, जिससे उपभोक्ताओं को वास्तविक न्याय मिलेगा।
- इस विवाद में कौन-कौन से पक्ष थे?
- फ्लैट खरीदार (याचिकाकर्ता) और बिल्डर (प्रतिवादी)।
- सुप्रीम कोर्ट ने किस मामले को ध्यान में रखा?
- पुणे की Palm Groves Cooperative Housing Society का मामला।
- 2002 के संशोधन का असर अदालतों और उपभोक्ता फोरम पर क्या पड़ा?
- उपभोक्ता फोरम के आदेश निष्पादन में बाधा आई और लंबित मामले बहुत बढ़ गए।
- इस फैसले के बाद निष्पादन के मामलों की स्थिति क्या होगी?
- निष्पादन के मामले तेजी से निपटेंगे और उपभोक्ता को न्याय शीघ्र मिलेगा।
- सुप्रीम कोर्ट ने निष्पादन मामलों के निपटारे के लिए क्या निर्देश दिए?
- NCDRC के अध्यक्ष को शीघ्र निपटारे के लिए कदम उठाने और वरिष्ठ अधिवक्ता को अमीकस क्यूरी नियुक्त करने के निर्देश।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 25 क्या है?
- यह फोरम के आदेशों को लागू करने का प्रावधान है।
- उपभोक्ता फोरम के आदेशों को निष्पादित करने की प्रक्रिया क्या है?
- अब इसे दीवानी कोर्ट के आदेशों की तरह माना जाएगा और उसी तरह निष्पादित किया जाएगा।
- 2019 में इस कानूनी खामी को कैसे सुधारा गया?
- संसद ने 2002 के संशोधन को सही किया और धारा 25 को पुनः “हर आदेश” लागू करने वाला बनाया।
- इस मामले में लंबित निष्पादन मामलों की संख्या कितनी बढ़ गई थी?
- 1992-2002 में 1,470 से बढ़कर 2020-2024 में 56,578 तक।
- क्या सुप्रीम कोर्ट ने पुराने उच्च न्यायालय के आदेशों को रद्द किया?
- हाँ, उन आदेशों को रद्द कर जिला फोरम के आदेश को पुनः प्रभावी किया।
- इस निर्णय का उपभोक्ता कानून में क्या महत्व है?
- यह उपभोक्ताओं के अधिकारों को मजबूत करने वाला एक ऐतिहासिक फैसला है।
- उपभोक्ता न्याय में इस फैसले का सामाजिक प्रभाव क्या होगा?
- उपभोक्ता न्याय प्रणाली पर भरोसा बढ़ेगा और उपभोक्ताओं को न्याय मिलेगा।
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