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Supreme Court Upholds Doctors’ Liability सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: डॉक्टर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ही रहेंगे, पुनर्विचार याचिका खारिज

Supreme Court Upholds Doctors' Liability

Supreme Court Upholds Doctors’ Liability

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए चिकित्सा पेशेवरों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उत्तरदायी बनाए रखने के अपने पुराने निर्णय पर पुनर्विचार करने से स्पष्ट इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की तीन-सदस्यीय पीठ ने उस समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया है जो 1995 के इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम वी. पी. शांथा के ऐतिहासिक फैसले पर पुनर्विचार की मांग कर रही थी।

यह मामला MEDICO LEGAL SOCIETY OF INDIA बनाम BAR OF INDIAN LAWYERS एवं अन्य, डायरी संख्या 57132/2024, सिविल अपील संख्या 2646/2009 के तहत आया था।

न्यायालय का निष्कर्ष

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा:

“समीक्षा याचिका और संबंधित दस्तावेजों का सूक्ष्म अध्ययन करने के बाद, हमें पुनर्विचार के लिए कोई न्यायोचित आधार नहीं मिला। अतः समीक्षा याचिका खारिज की जाती है।”

इस टिप्पणी से स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट अब इस विषय में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहता और पुराने फैसले को पूरी तरह से मान्यता प्रदान करता है।

पृष्ठभूमि: कहाँ से शुरू हुआ मामला?

इस मामले की जड़ें मई 2024 की एक दो-न्यायाधीशीय पीठ के आदेश से जुड़ी हैं। उस समय न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने यह कहा था कि कानूनी पेशेवर (वकील) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि वी. पी. शांथा मामले में दी गई व्याख्या को अब पुनः विचार के लिए बड़ी पीठ को सौंपा जाना चाहिए।

इस अनुरोध के आधार पर मामला एक बड़ी पीठ, यानी तीन-न्यायाधीशीय पीठ के पास भेजा गया। लेकिन नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट की तीन-सदस्यीय पीठ ने यह कहते हुए पुनर्विचार को खारिज कर दिया कि केवल कानूनी पेशे के संदर्भ में बात की जा रही थी, न कि चिकित्सा पेशे के।

पीठ की विस्तार से टिप्पणी:

“न्यायालय के समक्ष जो मुद्दा प्रस्तुत था, वह विशेष रूप से कानूनी पेशे से संबंधित था। न्यायालय ने साफ-साफ यह कहा कि कानूनी पेशेवर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत नहीं आते। इसलिए, सिर्फ इस आधार पर वी. पी. शांथा के निर्णय को फिर से खोलना उचित नहीं है।”

“जहां तक अन्य पेशेवरों (जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट) की बात है, उनके मामलों में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत कवर होना अलग-अलग तथ्यों पर आधारित रहेगा। ऐसे मामलों पर उपयुक्त अवसर आने पर विचार किया जा सकता है।”

क्या कहता है वी. पी. शांथा का ऐतिहासिक निर्णय?

वर्ष 1995 में आए इस निर्णय ने भारतीय उपभोक्ता कानून में एक क्रांतिकारी परिवर्तन किया था। वी. पी. शांथा मामले में यह स्पष्ट किया गया था कि जब कोई चिकित्सा सेवा शुल्क के बदले दी जाती है, तो वह “सेवा” की श्रेणी में आती है, और मरीज उस सेवा का उपभोक्ता होता है। इसलिए, यदि चिकित्सा सेवा में लापरवाही होती है, तो मरीज उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कर न्याय प्राप्त कर सकता है।

क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?

  1. उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा: यह निर्णय मरीजों को उनके अधिकारों के प्रति सजग बनाता है और चिकित्सा संस्थानों को सेवा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।
  2. चिकित्सकीय जवाबदेही: यह फैसला चिकित्सकों और अस्पतालों को कानूनी रूप से जवाबदेह ठहराने की राह प्रशस्त करता है।
  3. कानूनी स्पष्टता: यह स्पष्ट करता है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का दायरा सिर्फ उत्पाद या व्यापार सेवाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि पेशेवर सेवाएं भी इसमें शामिल हैं।
  4. न्यायिक स्थिरता: सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने निर्णय को दोहराते हुए न्यायिक सिद्धांतों की स्थिरता बनाए रखी है, जो कि कानून की व्याख्या में अत्यंत आवश्यक होती है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत में उपभोक्ता अधिकारों को मजबूती प्रदान करता है, खासकर चिकित्सा क्षेत्र में। यह फैसले यह स्पष्ट करते हैं कि डॉक्टर या अन्य चिकित्सा पेशेवर अपनी सेवाओं के लिए जब शुल्क लेते हैं, तो वे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में आते हैं और उन्हें अपने सेवा की गुणवत्ता के लिए जवाबदेह माना जाएगा।

इस निर्णय से चिकित्सा संस्थानों की जिम्मेदारी और जवाबदेही सुनिश्चित होती है और साथ ही उपभोक्ताओं को यह विश्वास भी मिलता है कि अगर उन्हें सेवा में कोई कमी लगती है तो उनके पास न्याय पाने का एक वैधानिक रास्ता मौजूद है।

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इस ब्लॉग से संबंधित FAQ

प्रश्न 1: क्या डॉक्टर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आते हैं?

उत्तर:
हाँ, सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, डॉक्टर और अन्य चिकित्सा पेशेवर जब भुगतान लेकर चिकित्सा सेवा प्रदान करते हैं, तो वे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (संशोधित रूप 2019) के अंतर्गत आते हैं। यानी यदि कोई मरीज सेवा से असंतुष्ट है या लापरवाही का शिकार होता है, तो वह उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कर सकता है।

प्रश्न 2: सुप्रीम कोर्ट ने किस केस में यह निर्णय बरकरार रखा?

उत्तर:
यह निर्णय 1995 के ऐतिहासिक केस इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम वी. पी. शांथा में दिया गया था। वर्ष 2024 में इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की तीन-सदस्यीय पीठ ने समीक्षा याचिका खारिज करते हुए पुराने फैसले को बरकरार रखा।

प्रश्न 3: क्या वकील (कानूनी पेशेवर) भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आते हैं?

उत्तर:
नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में यह स्पष्ट किया कि वकील और अन्य कानूनी पेशेवर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते हैं। अदालत ने कहा कि कानूनी सेवा पेशे की प्रकृति अलग है और उसे इस अधिनियम में शामिल नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 4: यह निर्णय उपभोक्ताओं के लिए कैसे फायदेमंद है?

उत्तर:
यह निर्णय मरीजों को कानूनी सुरक्षा और अधिकार प्रदान करता है। यदि किसी चिकित्सक या अस्पताल द्वारा लापरवाही होती है, तो मरीज उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कर न्याय प्राप्त कर सकता है। इससे चिकित्सा क्षेत्र में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बढ़ता है।

प्रश्न 5: क्या सुप्रीम कोर्ट भविष्य में इस पर पुनर्विचार कर सकता है?

उत्तर:
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस मुद्दे पर दोबारा विचार करने का कोई औचित्य नहीं है। तीन-सदस्यीय पीठ ने समीक्षा याचिका को “अप्रासंगिक” बताते हुए खारिज कर दिया। भविष्य में किसी नए मामले में विशिष्ट तथ्यों के आधार पर कोर्ट विचार कर सकती है, लेकिन फिलहाल निर्णय अंतिम है।

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