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Supreme Court’s action on misleading medical ads भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती | राज्यों को ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ एक्ट लागू करने के निर्देश

Supreme Court’s action on misleading medical ads
परिचय: भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों पर न्यायपालिका की चिंता
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं और चिकित्सा उत्पादों को लेकर गलत दावों वाले भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों की भरमार है। चाहे वह टीवी हो, अख़बार हो या सोशल मीडिया – हर जगह तथाकथित चमत्कारी इलाज और जादुई दवाओं का प्रचार देखने को मिलता है। इन दावों से आम जनता भ्रमित होती है और अपनी सेहत को जोखिम में डालती है।
इन्हीं चिंताओं को गंभीरता से लेते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 26 मार्च 2025 को ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के प्रभावी क्रियान्वयन को लेकर सभी राज्यों को सख्त निर्देश जारी किए हैं।
क्या है ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ (DMR) एक्ट, 1954?
DMR अधिनियम, 1954 का उद्देश्य है ऐसे भ्रामक, झूठे और अतिरंजित विज्ञापनों पर रोक लगाना, जो यह दावा करते हैं कि वे गंभीर बीमारियों का इलाज कर सकते हैं या जादुई रूप से स्वास्थ्य समस्याओं को दूर कर सकते हैं। इस अधिनियम के तहत:
- गर्भपात, गर्भनिरोधक, यौन शक्ति बढ़ाने, मासिक धर्म की समस्याओं और
- कैंसर, डायबिटीज़, उच्च रक्तचाप, एड्स, पथरी, लकवा, गठिया आदि के इलाज का दावा करने वाले विज्ञापनों पर प्रतिबंध है।
- जादुई उपचार या चमत्कारी दवाओं का प्रचार करना अवैध है।
- भ्रामक और झूठे विज्ञापनों को प्रकाशित करना या प्रसारित करना दंडनीय अपराध है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश: राज्यों के लिए 7 बड़े निर्देश
सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ – न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूयान – ने भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किए। आदेश के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
1. राजपत्रित अधिकारियों की नियुक्ति:
सभी राज्यों को एक महीने के भीतर ऐसे राजपत्रित अधिकारियों की नियुक्ति करनी होगी जो धारा 8 के तहत तलाशी, जब्ती और FIR दर्ज कर सकें।
2. पुलिस को प्रशिक्षण:
राज्य पुलिस बलों को इस कानून के बारे में प्रशिक्षित करने के लिए पुलिस अकादमियों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।
3. शिकायत निवारण तंत्र:
हर राज्य में एक ग्रेवंस रिड्रेसल सिस्टम स्थापित किया जाए, जिससे आम नागरिक भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों की शिकायत दर्ज कर सकें।
4. टोल-फ्री नंबर और ईमेल की सुविधा:
शिकायतें दर्ज कराने के लिए टोल-फ्री नंबर और ईमेल प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराए जाएं। दो महीने के भीतर इस तंत्र को पूरी तरह चालू करने के निर्देश दिए गए हैं।
5. प्राप्त शिकायतों पर शीघ्र कार्रवाई:
कोई भी शिकायत मिलने पर, उसे संबंधित अधिकारी के पास भेजा जाए, जो यदि उल्लंघन पाए, तो एफआईआर दर्ज करवाकर कानूनी कार्रवाई करें।
6. जन-जागरूकता अभियान:
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) और राज्य विधिक प्राधिकरणों को निर्देशित किया गया है कि वे जनता को जागरूक करें कि कैसे भ्रामक विज्ञापन उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
7. राज्यों की प्रगति रिपोर्ट:
सभी राज्यों और केंद्र सरकार को 30 जून 2025 तक अदालत के इन आदेशों पर हुई प्रगति की रिपोर्ट पेश करनी होगी।
भ्रामक विज्ञापन और पतंजलि विवाद: मामला कैसे शुरू हुआ?
इस मामले की शुरुआत भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) द्वारा दायर याचिका से हुई, जिसमें पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा किए जा रहे भ्रामक विज्ञापनों पर रोक की मांग की गई थी। पतंजलि ने अपने विज्ञापनों में यह दावा किया था कि उनकी आयुर्वेदिक दवाएं कैंसर, डायबिटीज़ और कोविड जैसी बीमारियों का इलाज कर सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इन दावों को “गंभीर और भ्रामक” करार देते हुए आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव को चेतावनी दी थी। बाद में माफीनामे जारी होने के बाद 13 अगस्त 2024 को अदालत ने अवमानना कार्यवाही समाप्त कर दी।
केंद्र सरकार की ओर से तकनीकी समाधान
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कोर्ट को बताया कि एक डिजिटल डैशबोर्ड विकसित किया जा रहा है, जिस पर सभी राज्य भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध की गई कार्रवाई की जानकारी अपलोड कर सकेंगे। कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह कार्य 3 महीने में पूरा करने के निर्देश दिए हैं।
अमिकस क्यूरी की अहम बातें
वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत ने बताया कि DMR अधिनियम के तहत FIR दर्ज करना, तलाशी और जब्ती करना और विज्ञापनों की जांच करना तीन मुख्य कानूनी उपाय हैं। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि कई राज्य केवल चेतावनी और माफीनामे तक सीमित हैं, जो कि कानून का मज़ाक है।
स्वास्थ्य कानून और उपभोक्ता का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्वास्थ्य का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसका हिस्सा है कि उपभोक्ताओं को यह पता हो कि वे जो उत्पाद खरीद रहे हैं, उनकी गुणवत्ता क्या है। झूठे, भ्रामक और अतिरंजित दावे उपभोक्ता को धोखे में डालते हैं और इस पर सख्ती आवश्यक है।
निष्कर्ष: स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ अब नहीं चलेगा
भारत में झूठे चिकित्सा दावों, आयुर्वेदिक जादुई इलाज, और टीवी-रेडियो पर दिखाए जाने वाले चमत्कारी विज्ञापनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने जो सख्त रुख अपनाया है, वह एक स्वागत योग्य कदम है। इससे न केवल जनता को धोखे से बचाया जा सकेगा, बल्कि एक सुनियोजित स्वास्थ्य कानून प्रणाली की दिशा में भी प्रगति होगी।
यह जरूरी है कि आम नागरिक भी अब जागरूक हो जाएं और भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों को पहचानें, उनसे सावधान रहें, और सरकारी शिकायत तंत्र का उपयोग करें।
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इस ब्लॉग से संबंधित FAQ
1. ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 क्या है?
उत्तर:
यह एक केंद्रीय कानून है जो झूठे और भ्रामक मेडिकल विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए बनाया गया है। यह अधिनियम ऐसे विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है जो दावा करते हैं कि कोई दवा या टोटका गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर, मधुमेह या गुर्दे की पथरी को ठीक कर सकता है।
2. इस अधिनियम के तहत कौन-कौन सी बीमारियाँ आती हैं?
उत्तर:
इस अधिनियम के तहत जिन बीमारियों के लिए झूठे दावे करना प्रतिबंधित है उनमें शामिल हैं — कैंसर, मोतियाबिंद, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, यौन रोग, किडनी स्टोन, गर्भपात के उपाय आदि।
3. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को कौन-कौन से निर्देश दिए हैं?
उत्तर:
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिए हैं कि वे इस अधिनियम को लागू करने के लिए गजेटेड अधिकारी नियुक्त करें, पुलिस को प्रशिक्षित करें, और एक शिकायत निवारण तंत्र (Grievance Redressal Mechanism) स्थापित करें ताकि आम जनता झूठे विज्ञापनों की शिकायत कर सके।
4. क्या यह अधिनियम सिर्फ टीवी और अखबारों पर लागू होता है?
उत्तर:
नहीं, यह अधिनियम किसी भी प्रकार के विज्ञापन जैसे कि पोस्टर, बैनर, सर्कुलर, पर्चे, टीवी विज्ञापन, सोशल मीडिया प्रचार, ऑडियो-विजुअल या मौखिक प्रचार पर भी लागू होता है।
5. यदि कोई झूठा मेडिकल विज्ञापन देखता हूँ, तो शिकायत कैसे कर सकता हूँ?
उत्तर:
आप राज्य सरकार द्वारा निर्धारित टोल-फ्री नंबर या ईमेल के माध्यम से शिकायत दर्ज कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को यह व्यवस्था दो महीने में लागू करने का निर्देश दिया है।
6. क्या सिर्फ विज्ञापनकर्ता ही दोषी होते हैं?
उत्तर:
नहीं, अधिनियम के तहत विज्ञापन बनाने वाला, उसे प्रकाशित करने वाला, प्रचार करने वाला और समर्थन करने वाला (endorser) – सभी को उत्तरदायी माना जाता है।
7. सुप्रीम कोर्ट ने Patanjali के खिलाफ क्या कदम उठाए?
उत्तर:
Patanjali द्वारा झूठे मेडिकल विज्ञापन प्रकाशित करने पर सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना की कार्यवाही शुरू की थी। हालांकि, बाद में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की माफी स्वीकार करते हुए मामला बंद कर दिया गया।
8. क्या DMR अधिनियम के तहत सीधे FIR दर्ज हो सकती है?
उत्तर:
हाँ, यह एक संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) है। कोई भी अधिकृत अधिकारी सीधे विज्ञापन की जांच कर FIR दर्ज कर सकता है।
9. क्या आम जनता को इस अधिनियम की जानकारी दी जाएगी?
उत्तर:
हाँ, सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (Legal Services Authorities) को जनजागरण कार्यक्रम चलाने के निर्देश दिए हैं ताकि जनता को इस अधिनियम और भ्रामक विज्ञापनों के खतरों के बारे में जागरूक किया जा सके।
10. क्या केंद्र सरकार भी इस प्रक्रिया में शामिल है?
उत्तर:
हाँ, केंद्र सरकार ने एक ऑनलाइन डैशबोर्ड बनाने की प्रक्रिया शुरू की है, जिसमें सभी राज्य अपने-अपने झूठे विज्ञापन के खिलाफ उठाए गए कदमों की जानकारी अपलोड करेंगे।
Judgment: INDIAN MEDICAL ASSOCIATION & ANR. versus UNION OF INDIA & ORS
Read: The Drugs And Magic Remedies (Objectionable Advertisements) Act, 1954
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