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The doctor is not responsible for the problem that arises after proper care उचित देखभाल के बाद उत्पन्न समस्या के लिए चिकित्सक जिम्मेदार नहीं

Accepting the doctor’s appeal, the State Consumer Court gave a big decision: The doctor is not responsible for the problem that arises after proper care | डॉक्टर की अपील स्वीकार करते हुए स्टेट कंज्यूमर कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला: उचित देखभाल के बाद उत्पन्न समस्या के लिए चिकित्सक जिम्मेदार नहीं
राजस्थान राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, जोधपुर बेंच ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए चिकित्सक को मरीज की बीमारी के लिए दोषी मानने से इंकार कर दिया है, यदि ऑपरेशन सावधानीपूर्वक और चिकित्सकीय मानकों के अनुसार किया गया हो। आयोग ने डॉ. अनीता राजपुरोहित द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए, जिला उपभोक्ता आयोग, पाली के आदेश को निरस्त कर दिया। इस निर्णय के साथ ही यह स्पष्ट किया गया कि चिकित्सा क्षेत्र में डॉक्टरों की सीमाओं और उनके कर्तव्यों के दायरे को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के परिप्रेक्ष्य में कैसे देखा जाना चाहिए।
प्रकरण का संक्षिप्त विवरण
मामला सुमेरपुर निवासी एक निजी क्लिनिक से संबंधित है, जहां 27 मई को एक 40 वर्षीय महिला का गर्भाशय और बच्चेदानी का ऑपरेशन प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. अनीता राजपुरोहित द्वारा सफलतापूर्वक किया गया था। ऑपरेशन के तुरंत बाद महिला की स्थिति स्थिर थी और उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी।
हालांकि, कुछ समय बाद महिला ने शिकायत की कि ऑपरेशन के पश्चात उसे पेशाब लीक होने और पेट में लगातार दर्द की समस्या होने लगी। महिला ने पुनः डॉ. अनीता से संपर्क किया, लेकिन उसे अपनी समस्या के लिए संतोषजनक इलाज नहीं मिल पाया। इसके बाद, महिला के पति ने पाली जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए चिकित्सक पर लापरवाही का आरोप लगाया और मुआवजे की मांग की।
जिला आयोग का फैसला और डॉक्टर की अपील
पाली जिला उपभोक्ता आयोग ने मामले की विस्तृत सुनवाई के बाद दिनांक 10 अक्टूबर 2023 को पीड़िता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए चिकित्सक को दोषी करार दिया और मुआवजा प्रदान करने का आदेश दिया। इस निर्णय से असंतुष्ट होकर डॉ. अनीता ने राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील दायर की, जिसमें उन्होंने यह तर्क दिया कि ऑपरेशन चिकित्सा मानकों के अनुसार सावधानीपूर्वक किया गया था, तथा ऑपरेशन के पश्चात मरीज ने जयपुर के एक बड़े अस्पताल में भी उपचार कराया था।
डॉ. अनीता ने यह भी प्रस्तुत किया कि किसी भी सर्जरी के बाद जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं, जो चिकित्सक की लापरवाही का स्वतः प्रमाण नहीं होती। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला देते हुए यह स्थापित करने का प्रयास किया कि बिना किसी ठोस चिकित्सा प्रमाण के चिकित्सक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

राज्य उपभोक्ता आयोग का निर्णय
राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष श्री देवेंद्र कच्छवाह और सदस्य श्री लियाकत अली ने पूरे मामले की गहनता से समीक्षा की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्ववर्ती निर्णयों का संदर्भ लेते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि चिकित्सक ने अपनी ओर से पूर्ण सतर्कता और दक्षता के साथ ऑपरेशन किया था। आयोग ने माना कि मरीज के बाद में उत्पन्न लक्षण, जैसे पेशाब का रिसाव और पेट दर्द, स्वाभाविक रूप से सर्जिकल प्रक्रिया के संभावित जोखिम हो सकते हैं और इन्हें चिकित्सकीय लापरवाही नहीं कहा जा सकता, जब तक कि स्पष्ट सबूत न हो।
इस आधार पर राज्य उपभोक्ता आयोग ने डॉ. अनीता की अपील स्वीकार करते हुए जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश को रद्द कर दिया और चिकित्सक को दोषमुक्त करार दिया।
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महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अंतर्गत प्रभाव
इस फैसले से कुछ महत्वपूर्ण कानूनी पहलू स्पष्ट होते हैं:
- चिकित्सा लापरवाही की परिभाषा: सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उपभोक्ता आयोगों ने बार-बार यह दोहराया है कि चिकित्सा लापरवाही सिद्ध करने के लिए मरीज को यह साबित करना अनिवार्य है कि डॉक्टर ने उस स्तर की देखभाल नहीं की जो एक सामान्य रूप से कुशल चिकित्सक से अपेक्षित होती है।
- बोझ-ए-प्रमाण (Burden of Proof): चिकित्सा लापरवाही के मामलों में यह रोगी (या शिकायतकर्ता) का दायित्व होता है कि वह प्रमाण प्रस्तुत करे कि चिकित्सक की लापरवाही से ही उसे क्षति पहुंची है।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 का प्रभाव: नए अधिनियम ने चिकित्सा सेवा को ‘सेवा’ की परिभाषा में स्पष्ट रूप से शामिल किया है, जिससे चिकित्सकों पर उपभोक्ता अदालतों में दावे किए जा सकते हैं। लेकिन बिना ठोस साक्ष्य के डॉक्टरों के खिलाफ आदेश पारित करना न्यायसंगत नहीं है।
- सर्जिकल जटिलताएं और जिम्मेदारी: यदि सर्जरी चिकित्सा मानकों के अनुरूप की गई हो और फिर भी जटिलताएं उत्पन्न हो जाएं, तो डॉक्टर को केवल इसी आधार पर उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
- न्यायिक सतर्कता: उपभोक्ता फोरम्स को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चिकित्सा पेशे के विशेष स्वभाव और उसमें जुड़े संभावित जोखिमों को ध्यान में रखते हुए निर्णय पारित किए जाएं, ताकि ‘डिफेंसिव मेडिसिन’ (Defensive Medicine) जैसी प्रवृत्ति को बढ़ावा न मिले।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: क्या हर सर्जिकल जटिलता डॉक्टर की लापरवाही मानी जाती है?
उत्तर: नहीं, यदि ऑपरेशन चिकित्सा मानकों के अनुसार सावधानीपूर्वक किया गया है और फिर भी कोई जटिलता उत्पन्न होती है, तो इसे डॉक्टर की लापरवाही नहीं माना जा सकता। हर जटिलता के लिए चिकित्सक को उत्तरदायी ठहराना उचित नहीं है।
प्रश्न 2: चिकित्सा लापरवाही साबित करने की जिम्मेदारी किसकी होती है?
उत्तर: चिकित्सा लापरवाही के मामलों में मरीज या शिकायतकर्ता को यह साबित करना होता है कि डॉक्टर ने आवश्यक सावधानी नहीं बरती और इसी कारण उसे नुकसान हुआ।
प्रश्न 3: क्या उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत डॉक्टरों के खिलाफ शिकायत दर्ज की जा सकती है?
उत्तर: हां, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 में चिकित्सा सेवाओं को सेवा की श्रेणी में शामिल किया गया है, जिससे मरीज डॉक्टरों के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत कर सकते हैं।
प्रश्न 4: डॉक्टर को दोषी ठहराने के लिए कौन से प्रमाण जरूरी होते हैं?
उत्तर: मरीज को चिकित्सा रिपोर्ट, विशेषज्ञ की राय, इलाज में चूक के प्रमाण और डॉक्टर द्वारा की गई संभावित लापरवाही को स्पष्ट करने वाले दस्तावेज प्रस्तुत करने होते हैं।
प्रश्न 5: स्टेट कंज्यूमर कोर्ट ने इस केस में डॉक्टर के पक्ष में क्यों फैसला दिया?
उत्तर: कोर्ट ने पाया कि डॉक्टर ने ऑपरेशन में पूरी सावधानी बरती थी और मरीज की बाद की समस्या सामान्य सर्जिकल जटिलताओं के तहत आती थी, इसलिए डॉक्टर को लापरवाह नहीं माना जा सकता।
निष्कर्ष
राज्य उपभोक्ता आयोग का यह निर्णय चिकित्सकों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत लेकर आया है। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि हर सर्जिकल जटिलता को चिकित्सकीय लापरवाही नहीं माना जा सकता। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का उद्देश्य जहां उपभोक्ताओं को त्वरित न्याय दिलाना है, वहीं चिकित्सा पेशे में कार्यरत लोगों की गरिमा और ईमानदार सेवाओं की रक्षा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
Register a Consumer Complaint with National Consumer Helpline – NCH
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