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United India Insurance Company rejected the claim उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग ने भारी वर्षा से हुए नुकसान पर बीमा दावा अस्वीकार करने के लिए यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को दोषी ठहराया

United India Insurance Company rejected the claim
उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (State Commission) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को उपभोक्ता द्वारा किए गए बीमा दावे को अस्वीकार करने के लिए उत्तरदायी ठहराया है। यह दावा एक मधुमक्खी पालन व्यवसायी द्वारा किया गया था, जिसे भारी वर्षा के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा था।
मामले की पृष्ठभूमि:
प्रभावित पक्ष, यानी शिकायतकर्ता, एक मधुमक्खी पालन (Beekeeping) का व्यवसाय करता है। व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाने के लिए उसने सिंडिकेट बैंक से ऋण लिया था, जिसकी शर्तों के अनुसार उसे बीमा करवाना आवश्यक था। इसलिए, शिकायतकर्ता ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से “स्टैंडर्ड फायर एंड स्पेशल पेरील्स पॉलिसी” ली। यह बीमा पॉलिसी 20 जुलाई 2019 से लेकर 19 जुलाई 2020 तक वैध थी।
दुर्भाग्यवश, 19 अगस्त 2019 को क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा हुई, जिससे शिकायतकर्ता की लगभग 130 मधु बॉक्स (हनी बॉक्स) और मधुमक्खी छत्ते नष्ट हो गए। इस आपदा से हुए नुकसान की भरपाई के लिए शिकायतकर्ता ने बीमा कंपनी को सूचित किया और सर्वेक्षण के लिए सभी आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध करवाए।
बीमा कंपनी की प्रतिक्रिया:
बीमा कंपनी ने शिकायतकर्ता के दावे को खारिज करते हुए दावा किया कि सर्वेक्षणकर्ता (Surveyor) को पूरा स्टॉक निरीक्षण करने में कठिनाई हुई क्योंकि अधिकतर बॉक्स पहले ही हटा दिए गए थे और जो बचे थे, वे भी विभिन्न बीमित पक्षों के मिश्रित बॉक्स थे। कंपनी का कहना था कि यह स्पष्ट नहीं था कि कौन से बॉक्स वास्तव में शिकायतकर्ता के थे। इसके अतिरिक्त, बीमा कंपनी ने यह तर्क भी दिया कि वर्षा से हुआ नुकसान उनकी बीमा पॉलिसी के तहत कवर नहीं होता।
जिला उपभोक्ता आयोग का निर्णय:
शिकायतकर्ता ने इस अस्वीकृति के खिलाफ जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में शिकायत दर्ज की। जिला आयोग ने 21 नवंबर 2022 को आदेश पारित करते हुए बीमा कंपनी को निर्देशित किया कि वह शिकायतकर्ता को ₹5,52,500/- की राशि 6% वार्षिक ब्याज दर सहित अदा करे। इसके अतिरिक्त ₹10,000/- मुआवजा और ₹10,000/- वाद व्यय के रूप में भी दिए जाने का निर्देश दिया गया।
राज्य आयोग में अपील:
बीमा कंपनी इस निर्णय से असंतुष्ट होकर उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील लेकर पहुंची। उन्होंने यह दलील दी कि जिला आयोग ने सर्वेयर की रिपोर्ट और बीमा पॉलिसी की शर्तों को उचित रूप से नहीं समझा और न ही उनके लिखित तर्कों पर विचार किया।
राज्य आयोग का अवलोकन:
राज्य आयोग ने पूरे मामले की बारीकी से समीक्षा की। सर्वेयर की रिपोर्ट का अध्ययन करते हुए आयोग ने पाया कि शिकायतकर्ता को लगभग ₹40,000/- का नुकसान हुआ था। हालांकि रिपोर्ट में यह उल्लेख था कि क्षतिग्रस्त हनी बॉक्स दो अलग-अलग बीमित पक्षों के थे, लेकिन इसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि उनमें से कितने बॉक्स शिकायतकर्ता के स्वामित्व में थे।
राज्य आयोग ने बीमा पॉलिसी की शर्तों की गहराई से व्याख्या करते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि भारी वर्षा से हुआ नुकसान पॉलिसी के अंतर्गत शामिल प्राकृतिक आपदाओं (Perils) की श्रेणी में आता है। अतः बीमा कंपनी का यह तर्क असंगत पाया गया कि वर्षा जनित क्षति उनके कवर में नहीं आती।
आयोग का निर्णय:
राज्य उपभोक्ता आयोग ने सर्वेयर की रिपोर्ट को महत्वपूर्ण साक्ष्य मानते हुए जिला आयोग के आदेश को आंशिक रूप से संशोधित कर दिया। नई व्यवस्था के अनुसार, बीमा कंपनी को अब ₹40,000/- की क्षतिपूर्ति राशि 6% वार्षिक ब्याज दर के साथ शिकायतकर्ता को अदा करनी होगी। साथ ही, ₹10,000/- वाद व्यय (litigation cost) के रूप में देने का आदेश भी यथावत रखा गया।
इस प्रकार, राज्य आयोग ने बीमा कंपनी की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया और जिला आयोग के आदेश में आवश्यक संशोधन करते हुए अंतिम आदेश पारित किया।
इस निर्णय का महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष:
यह निर्णय उपभोक्ता संरक्षण कानूनों की शक्ति और उपभोक्ताओं के अधिकारों को लेकर एक सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करता है। आयोग ने यह स्पष्ट किया कि बीमा कंपनियां अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकतीं और उन्हें पारदर्शिता तथा निष्पक्षता के साथ कार्य करना अनिवार्य है। सर्वेयर की रिपोर्ट को यद्यपि निर्णायक नहीं माना गया, फिर भी उसकी भूमिका को अनदेखा नहीं किया गया।
इसके साथ ही यह भी प्रतिपादित हुआ कि बीमा पॉलिसियों की व्याख्या करते समय उनका उद्देश्य और उपभोक्ता की वास्तविक स्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
Read Meanwhile: 5 important decisions on consumer law सेवा में त्रुटि पर सुप्रीम कोर्ट के 5 प्रमुख फैसले हिंदी में
उपरोक्त बीमा विवाद से संबंधित हिंदी में 10 महत्वपूर्ण FAQ (Frequently Asked Questions) दिए गए हैं, जो उपभोक्ताओं, वकीलों, बीमा धारकों के लिए उपयोगी हैं:
1. यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी पर उपभोक्ता आयोग ने क्या निर्णय सुनाया?
उत्तर: उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को वर्षा से हुए नुकसान पर बीमा दावा अस्वीकार करने के लिए दोषी ठहराया और ₹40,000/- क्षतिपूर्ति राशि 6% ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया।
2. यह मामला किस प्रकार के बीमा से संबंधित था?
उत्तर: यह मामला “स्टैंडर्ड फायर एंड स्पेशल पेरील्स पॉलिसी” से संबंधित था, जो एक प्रकार की वाणिज्यिक बीमा पॉलिसी है।
3. शिकायतकर्ता को नुकसान किस कारण हुआ था?
उत्तर: 19 अगस्त 2019 को भारी वर्षा के कारण शिकायतकर्ता के 130 हनी बॉक्स और मधुमक्खी के छत्तों को भारी नुकसान हुआ था।
4. बीमा कंपनी ने दावा अस्वीकार क्यों किया?
उत्तर: बीमा कंपनी का कहना था कि सर्वेयर को पूर्ण स्टॉक नहीं दिखाया गया और हनी बॉक्स अन्य बीमित व्यक्तियों के साथ मिश्रित पाए गए, जिससे स्वामित्व स्पष्ट नहीं हो पाया।
5. उपभोक्ता आयोग ने बीमा पॉलिसी की कौन-सी शर्त लागू की?
उत्तर: आयोग ने माना कि बीमा पॉलिसी में प्राकृतिक आपदा (Natural Calamity) जैसे भारी वर्षा से हुए नुकसान को कवर किया गया है, इसलिए दावा अस्वीकार करना गलत था।
6. जिला उपभोक्ता आयोग ने कितना मुआवजा तय किया था?
उत्तर: जिला आयोग ने ₹5,52,500/- मुआवजा, ₹10,000/- मानसिक पीड़ा के लिए और ₹10,000/- वाद व्यय के रूप में देने का आदेश दिया था।
7. राज्य उपभोक्ता आयोग ने अंतिम रूप से क्या निर्णय दिया?
उत्तर: राज्य आयोग ने मुआवजा राशि को संशोधित कर ₹40,000/- निर्धारित किया और 6% वार्षिक ब्याज तथा ₹10,000/- वाद व्यय देने का आदेश दिया।
8. बीमा सर्वेयर की रिपोर्ट की क्या भूमिका होती है?
उत्तर: बीमा सर्वेयर की रिपोर्ट बीमा दावे का एक महत्वपूर्ण आधार होती है, लेकिन आयोग ने स्पष्ट किया कि सर्वेयर की रिपोर्ट अंतिम निर्णय नहीं होती — न्यायसंगत जांच आवश्यक है।
9. क्या वर्षा जनित नुकसान बीमा पॉलिसी के तहत कवर होता है?
उत्तर: हां, यदि बीमा पॉलिसी में “प्राकृतिक आपदा” (Acts of God) या “विशेष आपदाएँ” (Special Perils) शामिल हों, तो वर्षा से हुए नुकसान का दावा किया जा सकता है।
10. यदि बीमा कंपनी दावा अस्वीकार कर दे तो उपभोक्ता को क्या करना चाहिए?
उत्तर: उपभोक्ता को पहले बीमा कंपनी से लिखित उत्तर प्राप्त करना चाहिए और फिर जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करनी चाहिए। यदि आवश्यक हो, तो राज्य आयोग में अपील की जा सकती है।
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